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बहुत समय से जनता की, विद्वानों की और वक्तृत्वकला के अभ्यासियों की मांग थी कि इस दुर्लभ सामग्री का जनहिताय प्रकाशन किया जाय तो बहुत लोगों को लाभ मिलेगा । जनता की भावना के अनुसार हमने मुनिश्री की इस सामग्री को धारणा प्रारंभ किया । इस कार्य को सम्पन्न करने में श्री डोंगरगढ़, मोमासर, भादरा, हिसार, टोहाना, नरवाना. कैथल, हांसी, भिवानी, तोसाम, ऊमरा, सिसाय, जमालपुर, सिरसा और भटिंडा आदि के विद्यार्थियों एवं युवकों ने अथक परिश्रम किया है। फलस्वरूप लगभग सौ कापियों व १५०० विषयों में यह सामग्री संकलित हुई है। हम इस विशाल संग्रह को विभिन्न भागों में प्रकाशित करने का संकल्प लेकर पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हुए हैं ।
वक्तृत्वकला के बीज का यह चौथा भाग पाठकों की सेवा में प्रस्तुत है । इसके प्रकाशन का समस्त अर्थभार श्री एस० बी० ० एंड कंपनी, अहमदाबाद ने वहन किया है । से इस अनुकरणीय उदारता के लिए हम उनके हृदय आभारी हैं ।
इसके प्रकाशन एवं प्रूफ संशोधन आदि में श्रीचन्द जी सुराना 'सरस' तथा श्री ब्रह्मदेवसिंह जी आदि का जो हार्दिक सहयोग प्राप्त हुआ है— उसके लिए भी हम हृदय से कृतज्ञता-ज्ञापित करते हैं। आशा है यह पुस्तक जन-जन के लिए, बक्ताओं और लेखकों के लिए एक इनसाइक्लोपीडिया ( विश्वकोश ) का काम देगी और युग-युग तक इसका लाभ मिलता रहेगा...