SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 732
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाग दुसष्ट ७. अणुभ्यश्च महद्भ्यश्च शास्त्रेभ्यः कुशलो नरः । सर्वतः सारमादद्यात्, पुष्पेभ्य इव पट्पदः ॥ ८. P - भागवत ११८ । १० जैसे- भौंरा छोटे-बड़े सभी फूलों से रस लेता है, उसी प्रकार कुशल (गुणी ) मनुष्य को चाहिए कि वह छोटे-बड़े सभी शास्त्रों से सार ग्रहण करे | अनन्तशास्त्रं बहुला च विद्याः, अल्पयच कालो बहुविनता च । यत्सारभूतं तदुपासनीयं हंसो यथा श्रीरमिवाम्बुमध्यात् ॥ 7 १०७ -- चाणक्यनीति १५/१० शास्त्रों का ज्ञान अनन्त है, विद्यायें अनेक हैं, समय अल्प है एवं दिनबाधायें बहुत है | अतः जैसे हंस जलमिश्रित दूध में से दूध-दूध पी लेता है, वैसे ही जो पदार्थ सारभूत लगे, उसे तत्काल ग्रहण करलो ! 2. Art is long and time is short, आर्ट इज लोग एन्ड टाइम इज शोर्ट | -अंग्रेजी कायस स्वल्पवच कालो बहुला च विद्या । समय थोड़ा है और विद्याएँ बहुत है । १०. दृष्टं किमपि लोकेऽरिमन्, न निर्दोष न निर्गुणम् । आवृणुध्वमतो दोषान् विवृणुध्वं गुरणान्बुधाः ।। -- संस्कृत] कहावत - सुभाषितरत्नभाण्डागार, पृष्ठ ३६४ इस संसार में ऐसी कोई भी चीज नहीं देखी गयी, जिसमें कोई न कोई दोष अथवा गुण न हो । मतः बुधजनों को चाहिए कि वे दोषों को छोड़ कर गुणों को ले लें ।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy