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वक्तृत्वकला के बीज
१५. करे इलाध्यस्त्यागः शिरसि गपाप्रशमनं,
मुखेसत्या वाणी विजयिभुजयो:र्यमतुलम् । हृदि स्वच्छावृत्तिः थतमधिगतंकवतफलं, विनाप्येश्वरग प्रकृतिमहतां मण्डनमिदम् ।।
-भत हरि-नीतिशतक ६५ हायों में सुपात्रदान, मस्तक पर गुरुजनों के चरणों का अभिवादन, मुम्न में सत्यवचन, विजयी भुजाओं में अतुल पराक्रम, हृदय में स्वच्छ भावना और कानों में शास्त्रों का श्रवण । लो प्रकृति से महापुरुष होते हैं, उनके ये सब गुण विभा ऐश्वर्य के आभूषण हैं। ६. पाषाणरेखेव प्रतिपन्न महात्मनाम् । महात्माओं द्वारा लिया हुआ प्रण पत्थर की रेखा की तरह अमिट होता है। ७. न कालमतिवर्तन्ते, महान्तः स्वेषुकर्मधु ।
--पोगवाशिष्ठ ५।१०६ महापुरुष अपने कार्यों में कलातिनाम नहीं होने देते अर्थात् समय के पाबन्द होते हैं। ८. मनस्वी म्रियते कामं, कार्पण्यं न तु गच्छति । अपि निर्धारणमायाति, नानलो याति शीतताम् ।।
-हितोपदेश १।१३३ महापुरुष मर जाते हैं, किन्तु कृपणता कभी नहीं करते । आग बुझ जाती है परन्तु शीतल कभी नहीं होती। 1. संपत्तौ च विपत्तौ च, महतामेकरूपता। उदये सविता रक्तो, रक्तोऽस्तसमये तथा ।।
....-पञ्चतन्त्र २७