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पाँचवा भाग : चौथा कोष्टक
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. साधारण से साधारण मनुष्य भी इस बात को समझता
है । क्योंकि मनुष्य में विवेक है । ७. 'राष्ट्र की सम्पत्ति तो मनुष्य है, रेशम, कपास, स्वर्ण नहीं।
-रिचार्ड हॉर्च ८. यदि तुम पढ़ना जानते हो सा प्रत्यक मनुष्य स्वयं एक पूर्ण
-निंग ६. संसार को स्वाद बनाने वाला एक नमक है—मनुष्य । १०. मिनरतां माया, विरखां छाया । ११. आदमी री दवा आदमी, आदमी रा शंतान आदमी ।
-राजस्थानी कहावते १२. मानवीय मस्तिष्क
सुनार की पेटी में विराजमान चांदी का प्याला बोला"बस ! मैं तो मैं ही हूँ।" स्वर्णपात्र-चुप ! मेरे सामने तेरा अभिमान झूटा है। होरा-क्या मेरा तेज नहीं देखा, जो घमंड करता है ? पेटी-तुम सारे, क्यों मैं-मैं कर रहे हो, आखिर रक्षिका तो मैं ही हूँ। ताला-चुप रह, वाचाल ! मेरे बिना तेरे में क्या है ? धाबी-तू तो मेरे इशारे पर नाचनेवाला है क्यों गरज रहा है ? हाथ-पगली ! मेरे बिना तो तू हिल भी नहीं सकती है !