SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 593
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाँचवा भाग : चौथा कोष्टक २४१ . साधारण से साधारण मनुष्य भी इस बात को समझता है । क्योंकि मनुष्य में विवेक है । ७. 'राष्ट्र की सम्पत्ति तो मनुष्य है, रेशम, कपास, स्वर्ण नहीं। -रिचार्ड हॉर्च ८. यदि तुम पढ़ना जानते हो सा प्रत्यक मनुष्य स्वयं एक पूर्ण -निंग ६. संसार को स्वाद बनाने वाला एक नमक है—मनुष्य । १०. मिनरतां माया, विरखां छाया । ११. आदमी री दवा आदमी, आदमी रा शंतान आदमी । -राजस्थानी कहावते १२. मानवीय मस्तिष्क सुनार की पेटी में विराजमान चांदी का प्याला बोला"बस ! मैं तो मैं ही हूँ।" स्वर्णपात्र-चुप ! मेरे सामने तेरा अभिमान झूटा है। होरा-क्या मेरा तेज नहीं देखा, जो घमंड करता है ? पेटी-तुम सारे, क्यों मैं-मैं कर रहे हो, आखिर रक्षिका तो मैं ही हूँ। ताला-चुप रह, वाचाल ! मेरे बिना तेरे में क्या है ? धाबी-तू तो मेरे इशारे पर नाचनेवाला है क्यों गरज रहा है ? हाथ-पगली ! मेरे बिना तो तू हिल भी नहीं सकती है !
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy