________________
पाँचवां भाग : चौथा कोष्ठक
२३६
रोति से पड़ा, यदि शिल्पी है तो निःस्वार्थ भाव से दूसरों को सन्कलाओं की शिक्षा दे, यदि वक्ता है तो अपने प्रवचनों द्वारा नीतिमार्ग का प्रदर्शन कर और यदि चंद्र है तो दुनियाँ में रोग नावा की शुभ व्यवस्था कर ।
*