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पांचवा भाग : तीसरा कोष्टक
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- मुंडा, ठाकुर साहब की माता (जो डाकिनी थी) का सिर
मूंडा गया एवं मुराणा जी बचे । यतीजी को उसी समय ऊंट पर चढ़कर भागना पड़ा।
-रू के श्रावकों से भुत १४, भूमलाधार बरसात-मालेरकोटला में यतीजी ने सबारी
निकलते समय सलाम नहीं किया। नवाब ऋद्ध हुआ । लोगों ने कहा-ये चमत्कारी माल हैं । नवाब ने दस बजे तक बारिरा बरसाने के लिये कहा । साढ़े नौ बजे के बाद बादल निकले और मूसलाधार बरसात होने लगी । नवाब एवं लोगों ने माफी मांगी। वृष्टि बन्द की। फिर वहाँ
से यतीजी सिरसा चले गये । -हाकमधन्य से श्रुत १५. जलाशय सुखा दिए-रानियां गांव पर बीकानेर का हमला
हुआ 1 यतीजी ने रानियाँ से तीन-तीन कोस में सभी ....--- डाकिनी मनुष्यणी ही होती है और पदा-कदा जरख पर सवार होकर घुमा करती है । पहले वह माय के बल से बिलौने में रहे हार मानने को तथा तरबूज आदि फलों में रही हुई गिरी को म्यारने (स्थींचने) लगती है । इस प्रकार स्यारने के कारण वह स्यारी कहलाती है । ऐसा करते-करते जब वह बच्चों का कलेजा निकाल कर खाने लगती है तब उसे डाकिनी कहते हैं । हाकिनियो वारा गृहीत बालवः सुखने लग जाता है और अन्त में मर जाता है। ऐसी भी दन्त कथा है कि जमीन में दाटै हुए मृत बच्चे को डाकिनी रात के समय निकालकर जीवित कर लेती है, उस समय यदि डाकिनी को मार दिया जाय तो बच्चा जीवित भी रह सकता है।