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दैविक-चमत्कार की विचित्र बात १. भाला राजपूत-पाटड़ीनरेश करण गेला को रानी से
बादरा भूत संगम करने लगा। हलवद के राजपूत श्री हरपालदेव जो पाटड़ीनरेश के भानजे थे, छिपकर रानी के महल में रहे। ज्योंही भूत आय , चोटी एकड़ कर उसे पछाड़ने लगे। भून ने हारकर भारी उम्र मेवा स्वीकार की। भूत को जीत कर घर जाने समय मुग्न लगी । इमसान में चिता जल रही था। हरपालदब उसमें दो बकरे पत्राने लगे । अचाना जलती निता में स दो हाथ निकले। मांस समर्पण किया, लुप्त , नव जंघा चीर कर खून दिया । सक्तिदेवी प्रकट हुई एवं मुभाको पूछे बिना कोई काम न करना-इस भर्न से वह हरपालदेव की रानी बनी भुत का उपद्रव मिटाने से पाटडीना ने बथेष्ट मांगने का वरदान दिया। भूत एवं शक्ति की मलाह से रात-रात में तोरणा वांध जायें, उनने गांब मांगे | राजा की स्वीकृति मिली, हरालदेव घोड़े पर चढ़कर दौड़े एवं २३५२ गांवों में तोरण बांधे । फिर ५५॥ गांब' शक्ति रानी को विशेषरूप मे दान में दिए । प्रांगधा राजधानी बनाई गई। एकदिन राजकुमार खेल रहे थे। मान हाथी उन्हें
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