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कला के बीज
लवेला, असुचिविसा परमदुब्भिगंधा, काजयअगणिबण्णाभा, कक्ण्ड़फासा, दुरहियासा, असुभानरगा, असुभा नरपसु वेयरणा | नो चेत्र रगं नरए नेरइया निदायति वा, पयलायंति वा, सुई बा, रई वा, धिदं बा, मई वा उवल भति । - दशाश्रुत स्कन्ध ६ नरकस्थान भीतर से गोल, बाहर से चांसे उस्तरे के समान तीक्ष्ण है। वहां सदा अंधकार रहता है। सूर्यचन्द्रादिक का प्रकाश नहीं होता | नरकों का भूमितल विकृत यसा मांस- लोड़ी पीव के समूह के कीचड़ से लिप्त रहता है । मलमूत्रादि युक्त एवं दुर्गन्धसहित है, कृष्णअग्नि के समान प्रभा है । उसका स्पर्श कर्कश एवं दुस्सह है। इस प्रकार नरक-स्थान अशुभ है एवं उसमें वेदना भी अशुभ है। नरक में पापीजीवनिया एवं विशेषनिद्रा नहीं ले सकते तथा स्मृति, रति, घृति एवं मति की प्राप्ति नहीं कर सकते ।
८. नेरइयारणं भंते! केवइयं कालंठई पन्नत्ता ?
गोयमा ! जहन्नेणं दसवास सहस्साइ उक्कोसेर तेत्तीस
सागरीब माई |
- प्रज्ञापना ४
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भगवन् ! नरको में आयुष्य कितनी हैं ?
गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की एवं उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है 1
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