________________
पांचवां भाग : दूसरा कोष्ठक
जलपान अजीर्ण में औषधि है, पचजाने पर बल देनेवाला है, भोजन के बीच में अमृत है, किन्तु भोजन के अन्त में जहर के
समान अनिष्ट करनेवाला है। ६. प्रातकाल खटिया ते उठिके, पिये तुरत जो पानी। ता घर वैद्य कबहुँ न आवै, बात घाघ कहे जानी ॥
-घाघकवि ७. पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन सुभाषितम् ।
--चाणक्यनीति १४१ पृथ्वी में तीन रत्न हैं-जल, अन्न और सुभाषित | ८. पानी के बिना संसार में कुछ भी नहीं है
एक बार बादशाह ने पूछा- ७ नक्षत्रों में से वर्ष के नक्षत्र निकाल दें तो शेष कितने रहे ? वीरबल ने कहाशून्य । तत्त्व यह है कि दस नक्षत्रों में ही बर्षा होती है । उनके अभाव में वर्षा न होगी और संसार शून्य हो
जायगा । ६. सत्यं नाम गुणस्तवेव सहजः, स्वाभाविको स्वच्छता ,
किं ब्रूमः शुचितां ब्रजन्त्यश्चयः, सङ्गन यस्यारे । किं चातः परमस्ति ते शुत्रिपदं, त्वं जीवितं देहिना , स्वं चेन्नी च पथेन गच्छसि पयः ! कम्त्वां निरोड़ क्षमः । हे जल ! तेरे में सहज शीतलता है, स्वाभाषिक स्वच्छता है । लेरी पवित्रता के लिए क्या कहें ! तेरा संग होते ही अशुचि पर्वाय दूर हो जाते हैं। इससे बाकर तेरा क्या पवित्र पद हो ! तू ही देयारियों का जीवन है । है जान ! इतना कुछ होने पर