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________________ ७२ वक्तृत्वकला के बीज अरिहंत भगवान के रूप का सहारा लेकर जो ध्यान किया जाता है । उसे रूपस्यध्यान कहते हैं । [इ] निरञ्जनस्य सिद्धस्य, ध्यानं स्याद्रूपवर्जितम् । निरञ्जन सिद्ध भगवान का ध्यान रुपातीतध्यान है । १२. ध्यान की सामग्री संगत्यागः कषापायां, निग्रहो व्रतधाररणम् । मनोऽक्षारणा जयश्चेति, सामग्री ध्यानजन्मनि । -तस्वानुशासन ७५ परिग्रह का त्याग, कषाय का निग्रह, अतधारण करना तथा मन और इन्द्रियों को जीतना सब कार्य ध्यान की उत्पति में महायता करनेवाली सामग्री है। १३. ध्यान के हेतु--- गग्यं तत्त्रविज्ञानं नेग्रन्थ्यं समचित्तता । योगशास्त्र १०११ , परिग्रह जयति पञ्चते ध्यानहेतवः || बृहद्रव्यसंग्रह संस्कृतटीका, ५०२८१ १. वैराग्य, २. तत्त्वविज्ञान ३ निर्गन्धता ४ रामचित्तता, ५. परिजयन्ये पाँच ध्यान के हेतु है । १४. चार ध्यान एवं धर्म ध्यान के भेद-प्रभव चत्तारि भाषा पण्णत्ता, तं जहा अट्ट भाणे, रोई भा धम्मेमाणे सबके झाणे । 1 धम्मे भागे चउनि पत्ते तं जहा - आसाविज‍ आवायविजए विवागविजए संठारणविजए । धम्मस्स में भारपरस चत्तारि आलंवगुणा पातानंजा --
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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