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वक्तृत्वकला के बीज
अरिहंत भगवान के रूप का सहारा लेकर जो ध्यान किया जाता है । उसे रूपस्यध्यान कहते हैं ।
[इ] निरञ्जनस्य सिद्धस्य, ध्यानं स्याद्रूपवर्जितम् ।
निरञ्जन सिद्ध भगवान का ध्यान रुपातीतध्यान है । १२. ध्यान की सामग्री
संगत्यागः कषापायां, निग्रहो व्रतधाररणम् । मनोऽक्षारणा जयश्चेति, सामग्री ध्यानजन्मनि ।
-तस्वानुशासन ७५ परिग्रह का त्याग, कषाय का निग्रह, अतधारण करना तथा मन और इन्द्रियों को जीतना सब कार्य ध्यान की उत्पति में महायता करनेवाली सामग्री है।
१३. ध्यान के हेतु---
गग्यं तत्त्रविज्ञानं नेग्रन्थ्यं समचित्तता ।
योगशास्त्र १०११
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परिग्रह जयति पञ्चते ध्यानहेतवः ||
बृहद्रव्यसंग्रह संस्कृतटीका, ५०२८१
१. वैराग्य, २. तत्त्वविज्ञान ३ निर्गन्धता ४ रामचित्तता, ५. परिजयन्ये पाँच ध्यान के हेतु है ।
१४. चार ध्यान एवं धर्म ध्यान के भेद-प्रभव
चत्तारि भाषा पण्णत्ता, तं जहा अट्ट भाणे, रोई भा धम्मेमाणे सबके झाणे ।
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धम्मे भागे चउनि पत्ते तं जहा - आसाविज आवायविजए विवागविजए संठारणविजए ।
धम्मस्स में भारपरस चत्तारि आलंवगुणा पातानंजा --