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दूसरा कोष्ठक
ध्यान
१. घ्यानं तु विषये तस्मिन्नेकप्रत्ययसंततिः ।
अभिषानचिन्तामणि १५४ ___ ध्येय में एकाग्रता का हो जाना ध्यान है । २. चितर से गग्गया हवद्द झाणं। आवश्यकनियुक्ति १४५६
किसी एक विषय पर चित्त को एकान-स्थिर करना ध्यान है । ३. एकाग्नचिन्ता योगनिरोधो वा ध्यानम् ।
-जन सिद्धान्तदीपिका ५।२८ एकाग्रचिन्तन एवं मन-वचन-काया की प्रवृत्तिरूप योगों को
रोकना ध्यान है। ४. उपयोगे विजातीय-प्रत्ययाव्यवधानभाक् । शुकप्रत्ययो ध्यान, सूक्ष्याभोगसमन्वितम् ।
हानिशहानिशका १८।११ स्थिर दीपक की लौ के समान मात्र शुभलक्ष्य में लीन और विरोधी लक्ष्य के व्यवधानरहित ज्ञान, जो सूक्ष्म विषयों के
मालोचनसहित हो, उसे ध्यान कहते हैं। ५. मुहर्तान्तमनः स्थैर्य, ध्यानं छद्मस्थ-योगिनाम् ।
-योगशास्त्र ४।११५