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________________ वयतृत्व कला के बीज दस गुणों से युक्त अनगार अपने दोषों की आलोचना करने योग्य होता है, वे इस प्रकार हैं१ जातिसम्पन्न- समातिवाला, यह व्यक्ति प्रथम तो ऐसा बुरा काम करता ही नहीं, भूल से कर लेने पर वह शुद्धमन मे आलोचना कर लेता है। कुलसम्पत्र- उत्तमकुलवाला, यह व्यक्ति अपने द्वारा लिए गए प्रायश्चित को नियमपूर्वक अच्छी तरह से पूरा करता है। ३ विनयसम्पन्न- विनयवान्, यह बड़ों की बात मानकर हृदय में आलोचना कर लेता है। शानसम्पन्न- ज्ञानवान्, यह मोक्षमार्ग की आराधना के लिए क्या करना चाहिए और स्पा नहीं, इस बात को भली प्रकार समझकर आलोचना कर लेता है । ५ दर्शनसम्पन्न- श्रद्धावान्, यह भगवान के वचनों पर श्रद्धा होने के कारण यह शास्त्रों में बताई हुई प्रायश्चित से होने वाली शुद्धि को मानता है एवं आलोचना कर लेता है। ६ चारित्रसम्पत्र- उत्तमचरित्रवाला, यह अपने चारित्र की शुद्ध करने के लिए दोषों की आलोचना करता है। क्षान्त- क्षमावान्, यह किमी दोष के कारण गुरु से भत्सना या फटकार मिलने पर कोध नहीं करता, किन्तु अपना दोष स्वीकार करके आलोचना कर लेता है । दान्त- इन्द्रियों को वश में रखनेवाला, यह इन्द्रियों के विषयों में अनासवत होने के कारण कठोर से कठोर प्रायश्चित को भी पीघ्र स्वीकार कर लेता है एवं पापों की आलोचना भी शुद्धहृदय से करता है।
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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