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ज्ञात हुआ तो मेरे हर्ष की सीमाओं का और भी अधिक विस्तार हो गया । अब मैं कैसे कह कि इन दोनों में कौन बड़ा है और कौन छोटा ? अच्छा यही होगा कि एक को दूसरे से उपमित कर दूं। उनकी बहुश्रुतता एवं इनकी संग्रह-कुशलता से मेरा मन मुग्ध हो गया है । ____ मैं मुनि श्री जी, और उनकी इस महत्वपूर्णकुत्ति का हृदय से अभिनन्दन करता हूँ। विभिन्न भागों में प्रकाशित होने वाली इस विराट् कृति से प्रवचनकार, लेखक एवं स्वाध्यायप्रेमीजन' मुनि श्री के प्रति ऋणी रहेंगे । ने जब भी चाहेंगे, धक्तत्व के बीज में से उन्हें कुछ मिलेगा ही, वे रिक्तहस्त नहीं रहेंगे ऐसा मेरा विश्वास है ।
प्रवक्तृ-समाज-मुनि श्री जी का एतदर्थ आभारो है और आभारी
जैन आश्विन शुक्ला-३ आगरा
- उपाध्याय अमरमुनि