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________________ वक्तृत्वकला के बीच गंग लहर मेरी टूटी अंजीर, मृगछाला पर बैठ कबीर । कह कबीर कोउ सङ्ग न साथ । __जिसको राखत है रघुनाथ ।। इस चिन्तन के साथ ही इनके बंधन खुल गये और ये कुछ ही क्षणों में तट पर आ खड़े हुए। इनकी रचनाओं में योजक, आदिग्रन्थ, साखी, शबाचली, अखरावटी, ज्ञान-गुबड़ी आदि मुख्य है। कावीर अहिंसा, सत्य और सदाचार के प्रचारक थे और इन्हें बाह्याडम्बर रो बड़ी चिढ़ श्री। इरा समय इनके पंथ (कबीरपंथ) को माननेवाले ८.१ लाख बताए जाते हैं । --कल्याण संतअंक एवं श्रुति के आधार से । ११. महात्मा तुलसीदास इनका जन्म राजापुर गाँव में आसाराम ब्राह्मण के घर, माता इससी के गर्भ से मूलनक्षत्र में हुआ । मूसनक्षत्र में जन्म के कारण इनको माता-पिता ने छोड़ दिया । ये छटपटा रहे थे। संयोग-वश वहाँ साधु नरहरिदासजी आगये और इन्हें ले गये, पाल-पोषकर वेद-पुराण, रामायण आदि पढ़ाया । बाद में इनका विवाह हुआ। स्त्री पर ये इतने मुग्ध हो गये कि उसे कभी पीहर नहीं भेजते थे । एकबार इनका साला आया और इनको बिना पूछे ही अपनी बहन को ले गया। पता चलते ही ससुराल के लिए जमुना की तेजधार में कूद पड़े । तरलेतैरते थक गये | तब एवा मुर्दे की टौंग पकड़कर पार पहुंचे। अंधेरी रात थी। ससुराल का दरवाजा बन्द था । अतः ये दीवार पर लटकते हुए एक साँप को रस्सी ARश कर उसके
SR No.090530
Book TitleVaktritva Kala ke Bij
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhanmuni
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages837
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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