________________
चतुर्थः परिच्छेयः ।
सदाचरणमाइ
किं केशपाशः प्रतिपक्षलक्ष्म्याः किं वा प्रतापानलधूम एषः । दृष्ट्वा भयपाणिगतं कृपाणमेवं कधीनां मतयः स्फुरन्ति ॥ ७॥ हे जयसिंहदेव राजन्, भवरपाणिगत पाहा - जय र १ : २६ संशयं विदधतीत्यर्थः । किमेष प्रतिपक्षलक्ष्म्याः कैशपाशो न तु खडगः । अथदा किमेष प्रतापानमः । केशपाशोपि : धूमोऽपि कृष्णाः समागोऽपि कृष्णः । श्रतः संशयालङ्कारः ॥७५||
राजन ! अपके हाय में कृपाण देखकर कवियों की बुद्धि इस प्रकार विवेचन करने लगती है कि क्या यह रिपनियों का केशपाश है अथवा आपकी प्रतापाग्नि का धुओं है।
टिप्पणी-इस लोक में कृपाण के लिये केशराशि और प्रतापाग्निधून के संदेह से 'संशय' अलवार है ॥ ७९ ॥ संशयनिश्वयालकाताबरणमाघ-- इन्द्रः स एष यदि किन सहनमन्त्रणां लक्ष्मीपतिर्यदि कथन चतुर्भजोऽसौ। आः स्यन्दनध्वजधृतोदधुरताम्रचूडः श्रीकर्णदेवनृपसूनुरनं रणाने ||८०॥
स एष यदि इन्द्र इति संशयः। तर्हि अक्षयां नेत्राणां सहस्त्रं नास्ति तदा न भवतीन्द्र इति निश्चयः । यदि लक्ष्मीपतिस्तदा कर्य नासौ चतुभुमः। आः शान्तम्--श्रयं रणाने कर्णदेवनृपसूनुपसिंहदेवः । कीदृशः। स्यन्दनस्य रथस्य धजे घृल अधुर उत्कटस्ताम्रयुद्ध: कुको येन स तथा । लमातः संशयालङ्कारः । संशयनिश्चयालङ्कारश्च ॥ ८ ॥ __ यदि ये इन्द्र मो इनको सहन नेन क्यों नहीं हैं (इन्द्र सो सहस्राश है) यदि ये भगवान् विष्णु है तो इनको चार भुजायें क्यों नहीं हैं (क्योंकि भगवान् विष्णु चतुर्भुज है)। ओह! ये तो श्रीकर्णदेष के पुत्र राजा जयसिंह हैं, क्योंकि इनके रथ पर फहराने घाली ओ बसा है उस पर कुक्कुट चित्रित है। __ टिप्पणी-यहाँ राजा जयसिंह को देख कर इन्द्र अथवा विष्णु भगवान् का सन्देह हो रहा था। किन्तु उनके रथ में लगी हुई बजा से निश्चित हो गया कि ये राजा जयसिंह ही हैं। अतः यह निमथ' भळंकार का उदाहरण है ॥20॥ अथ इष्टान्तालकारमाह
अन्वयख्यापनं यत्र क्रियया स्यत्तदर्थयोः ।
दृष्टान्तं तमिति प्राहुरलङ्कारं मनीषिणः ।।१।। यन्त्र नियया स्वतदर्भयोः स्वार्थयोरन्वयल्यापन क्रियते । मन्दयः परस्परं योग्यगुणसम्बमस्तस्य ख्यापनं कयनं विधीयते तं दृष्टान्त मलकार मिति मनीषिणो युधाः प्राहः ।। ८१॥
जिस अलंकार में प्रस्तुत और अप्रस्तुत का क्रियानाय वेवादि सम्बन्ध से भाषातथ्य वर्णन किया जाता है उसे आचार्थगण 'न्स' मलकार कहते हैं 100