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यस्यात् । एवंविधा कस्य सुखस्य कमला यस्य नेमेः सम्बोधनम् । रम्भारामा तथैव । तथा— आरम्भारामा अर्थः पञ्चात् तथा कुर्भूमिरवककमका तथा रम्भारामा रम्भा एव रामा यस्यां सा रम्भारामा । तथा अकुरवककमला । एवं व्याख्याने पदद्वयस्यान्तरं भवति । 'भौति
हे रक्षक कदलीचन की वह भूमि अत्यन्त रमणीक है, क्योंकि उसमें कमलों का समूह है, सुन्दर कुरषकवृक्षों का कुआ है। मनोहारिणी सुन्दरियाँ हैं: पति से रहित निर्मल एवं रमयीक जलराशि है और है मनोहर शब्द करने. चाला हरिण यूथ भी ।
टिप्पणी- इस एलोक में प्रथम पाद की आवृत्ति द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ पाद में है । अतएव यह 'महायमक' का उदाहरण है ॥ ३० ॥
इदानीं तेनैव प्रकारेण पश्यमकोदाणानि । तत्र संसुतावृत्तौ भादिपदमकमाएहारीतहारी तवमेष ते सेवाल सेवालसहंसमम्भः ।
जम्बालजं बालमलं दधानं मन्दारमन्दारववायुरद्रिः ।। ३१ ।।
पोऽद्रिस्ततं विस्तीर्णमम्भो धन्ते । कीशोऽद्रिः। दारीबदारी, दारीताः पक्षिणस्तैदरी मनोहरः । तथा मन्दारमन्दारववायुः मन्दारेषु कल्पक्षेषु मन्दारवो मन्दशब्दो वायुर्यश्र सः। सुरभित्रायुरावस्तीत्यर्थः । कीदृशम् । सेवालसे वाससम् सेवा सेवायामलसा राजहंसायाम्भसि तथा अलमत्यर्थं बाळं नूतनं जम्बालनं कमळं दधानम् ॥ ३१ ॥
हारीस पक्षियों के समूह से भरा हुआ यह पर्वत अत्यन्त रमणीक है क्योंकि इसके ऊपर मन्दारवृक्षों से निकला हुआ मन्द मन्द वायु वल रहा है और इस पर्वत पर शैवाल के कारण भलसित हंससमूह से परिपूर्ण और कीचड़ से उपच निर्मल जलराशि (प्रपास आदि ) शोभित हो रहे हैं।
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टिप्पणी- इस श्लोक में आदि पद 'हारीत' की निर्विघ्न आवृति से 'संयुताजूतिमूलक आदिपदयमक' अलङ्कार है ॥ ३१ ॥ नेमिर्विशालनयनो नयनोदितश्रीर भ्रान्तबुद्धिविभयो विभवोऽथ भूयः । प्राप्तस्तदाजनगरानगराजि तत्र सूतेन चारु जगंदे जगदेकनाथः ।। ३२ ।
सूतेन सारथिना जगदेकनाथो नेमिश्वास यथा भवति तथा जगदे । कीदृशः । नयनोदितश्रीः नयेन भ्यायेनादिता प्रेरिता श्रीर्यस्य सः । न्यायाधिकशोम इत्यर्थः । तथा अभ्रान्तः सत्यो बुद्धिरूपी विभवो यस्य स तथा विगतो भयो यस्य स तथा । तदराजनगरात नारायणपुरातन नगराजि गिरीश्वरे रैवतके प्राप्तः ॥ ३२ ॥
संसार के एक मात्र स्वामी दीर्घनयन स्वामी नेमिनाथ जी, जिन्होंने अपनी नीति से धनोपार्जन किया और जिनका ऐश्वर्य सदैब स्थिर रहनेवाला है तथा