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वाजतागीर
भयानको रसो घोरवस्तुदर्शनाद्भवेत् । भीतिप्रकृतिमयस्वभावः। स मयानको रसः प्रायोग स्त्रीषु नीचेषु बाळेषु प्रशस्यते। मपरसो म्यावण्यमानी नूनमेसेष्वैव शोमते नान्यत्रास्य दीतिः ॥ २७ ॥
भयानक का स्थायीभाव भय है। वह (भय) किसी भयङ्कर वस्त को देखने से उत्पन्न होसा है। भयानक रस का वर्णन प्रायः बी, नीच जन और बालकों के सम्बन्ध में ही किया जाता है ॥ २० ॥ इदानीमस्य विभावादीन्दर्शयति
दिगालोकास्यशोषाङ्गकम्पगद्गदसम्भ्रमाः ।
वासवर्ण्यमोहाश्च वर्ण्यन्ते विचुबैरिह ।। २८ ।। अस्माद्भयानकादेले पदार्था उत्पन्न । अतोऽत्र रसे एते व्यावयन्ते । एते के । दिगालोको दिग्दर्शनम्, मुखशोषः, शरीरकम्पा, गद्दा वाणी, संभ्रमः, तथा प्रासः, षण्य विवर्णभावः, मोहो मूहता। सर्वन मुश्चति भयेन । हामी वय॑न्ते बुधैर्मावाः ॥ २८ ॥
विद्वानों ने भयानक रस के अनुभावों का वर्णन इस प्रकार से किया है-चारी मोर देखना, मुंह का सूखना, (हाय-पाँध आदि) का कॉपमा, वाणी का स्खलन, सम्भ्रान्ति, भय, शरीर पीला पड़ जाना और भूपा ॥ २८ ॥ . रौद्ररसमाह
क्रोधात्मको भवद्रोद्रः क्रोधश्चारिपराभवात । भीमवृत्तिवेदुभः सामर्शस्तन नायकः ।। २६ ।। स्वांसाघातस्वशंसात्रोत्क्षेप कुदयस्तथा ।
अत्रारातिजनाक्षेपोवृद्धेलनं चोपवर्ण्यते ॥ ३० ।। रौद्ररसः कोयात्मको भवति । कोपवारिपराजपाद्भवति । अरिक्तपराजयात्रोषः। यदा योऽरिणा पराजायते तदा तस्य क्रोषो जायत इत्यर्थः । तथा रौद्रे भीमतिकमा सामर्षों नरो नायको भवेत् ॥ २०-३० ॥
रौन रस का स्थायोमाव कोष है जो श द्वारा तिरस्कृत होने पर सरपण होता है। इस (रोदरस) का मायक भीषण स्वभाव वाला, उम्र और क्रोधी माना गया है ।। २९॥
रौद्र रस के अनुभाव है-अपने कन्धों को पीटमा, आरमश्लाघा, अनादि का कमा, कटि का टेवा हो जाना, शत्रुओं की निन्दा और मर्यादा का उपबंधन करमा ।। ३०॥