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वाम्भवालवारः। टिप्पणी- यहाँ पर 'कुनलयोनास आदि पदों का खषद करने से मिल-भित्र अर्थों का बोध होता है। अतः इसमें भिपशेष है ॥ १२९ ।। समुपयालकारमा,
एकत्र यत्र वस्तूनामनेकेषां निवन्धनम्।
अत्युत्कृष्टापकृष्टानां तं वदन्ति समुचयम् ।। १३८ ।। यत्र कविर अनेकेषामत्युत्कृष्टानामत्युत्तमानां अस्यपकृष्टानामतिमध्यमाना या वस्तूनां पदार्थानामेका निबन्धनं गुम्फनं ग्रन्थनं योजनमित्कार्थाः । तं समुच्चयं वदन्ति ॥ १३ ॥
जिस अछकार में अस्थन्त सरल अथवा निकट स्रों का एक साथ ही वर्णन किया जाता है उसको 'समुच्चय' कहते हैं ।। १३० ॥ अत्युलष्टसमुच्चयोदाबरणमाइ
अणहिल्लपाटकं पुरमवनिपतिः कर्णदेवनृपसूनुः ।
श्रीकलशनामधेयः करी च रत्नानि जगतीह ।। १३१॥ ___ सर्वोत्तममणदिलपाटवं पुरम् । तस्मिन्नननिपतिः कर्णदेवनृपसूनुः श्रीजयसिंहदेवः। सोऽभि सर्वोत्तमो भूपालेषु । तस्य श्रीकलशनामधेपः करी गजः । एतानीइ जगत्ति त्रीणि रमानि I ___ भणहिलपारह नामक नगर, कर्णदेव राजा का पुन (राजा मयसिंह) और श्रीकलश नामक हाथी--ये सीनो वस्तुएँ इस संसार में रसस्वरूप है।
टिप्पणी- इसमें महिलपाटल मगर, राजा अयसिंह और श्रीकलश हाथी-- इन दोनों उस्कृष्ट पातुओं का एकात्र प्रतिपादन करने से 'समुच्चम' अलार हुभा ॥ भत्यपकष्टालकारमाह
ग्रामे वासो नायको निर्विवेकः कौटियानामेकपात्रं कलत्रम् | नित्यं रोग: पारवश्यं च पुंसामेतत्सर्व जीयतामेव मृत्युः ।।१३२।। सुगमम् । भावना स्वयमेव विचारणीया । पोऽस्यपकृष्टसमुच्चयालङ्कारः ॥ ५३२ ।।
गाँव में रहना, मूर्ख पति, कुटिका श्री, लदेव रोगी रहना और परवाता-ये सभी वस्तुएँ मनुष्यों के जोते जी ही मृत्यु के समान हैं।
टिप्पणो-यहाँ गाँव में रहना आदि निक वस्तुओं का एक ही साय वर्णन किया गया है। अतएव यहाँसमुख्य अलङ्कार है॥ १३२ ।। अथाप्रस्तुतप्रशंसामा --
प्रशंसा क्रियते यत्राप्रस्तुतस्यापि वस्तुनः।
अप्रस्तुतप्रशंसां तामाहुः कृतधियो यथा ।। १३३ ।। यत्राप्रस्तुतस्यापि वस्तुनः प्रशंसा क्रियते कृतधियस्सामप्रस्तुतप्रशंसामाहुः ।। १३३ ॥
जिल काव्य में वर्णनीय वस्तु से भिन्न अन्य वस्तु की प्रशंसा की जाती है उसमें 'अप्रस्तुतप्रशसा' नामक अछार समलना चाहिये ॥ १३ ॥