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________________ वचनदृतम सकता । यद्यपि मैं यह जानता हूं कि नेमी ने जो यह कार्य योग्य किया है, किसी ने भी इसको अच्छा नहीं कहा, होने से फिर भी उनके इस कार्य कर किसी ने भी विरोध तक भी नहीं किया । किया है वह उन्होंने परन्तु विशिष्टशक्तिसंपन्न नेमीश्वर ने अनुचित किया कार्य यह मानता हूँ दि भी वह नहि किसी ने किया जानता हूं पर जो होते जगतभर में पुण्य श्री शक्तिशाली सेवा में भी श्रमर जिनकी हों खड़े बन पुजारी ऐसे मानव उचित अनुचित जो करें सर्वं थोड़ा देकर ठपका स्वयं पग पर कौन मारे हथौंडा ॥ ७३ ॥ प्रायें नश्चरितमिह तो सेवितं तत्त्वया किम् सेवित्वा हा ! यशसि विमले संभृतं दुर्बलत्वम् मुञ्चैत्वं यदुकूलभशो ! वाच्यताऽधायि वृत्तम् ८७ ब्रूयादित्यं न खलु नगरे विद्यते कोऽपि वोरः ॥७४॥ जय-मर्थ हे बेटी ! (नः श्रार्यः) हम लोगों के सार्य पुरुषों ने (इह) इस समय में यहां (यच्चरितं नो सेवितम् ) जिस श्राचरण का सेवन नहीं किया (हा ) सांस है कि ( वया सेवित्वा विमले यशसि दुर्बलत्वं कि संभृतम्) उस आचरण का सेवन करके आपने अपने यश में दुर्बलता-कुशता क्यों भरती है। अतः (यदुकुलमणे) हे यदुकुल के मणिस्वरूप ! (त्वम्) आप ( वाच्यता प्राधायि एतत् वृत्तं मुश्च ) निन्दा कराने वाले इस श्राचरा का परित्याग कर दें। (इत्यं ब्र ूयात्) ऐमी नेमी से कहै ऐसा (वीर) वीर (नगरे) इस नगर में (को-पि न विद्यते) कोई भी नहीं है। भावार्थ हे बेटी नमी के निकट जाकर नगर में कोई नहीं दिखता कि हम लोगों के जीवन में नहीं उतारा उसे आपने क्यों उतारा है. व्यवहार ने श्राप के यथा को कृश कर दिया है. ग्रतः जिससे श्राप की निन्दा हो रही हो उस कृत्य को आप छोड दें I नाथ ! आपके आयंजनों से जिसे कभी वह अपनाया वर्तमान में उसे आपने अपना कर क्यों लगाया उनसे ऐसा कहने वाला वीर इस बुजुर्गों ने जिस प्राचरण को अपने क्योंकि इस प्रकार के आचरित हुए
SR No.090527
Book TitleVachandutam Uttarardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages115
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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