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________________ वचनदुतम् तू है कौन कौन वह तेरा अब संबंध गया है टूट भूल जाउ नाते पहिले के के अत्र हो गये हैं सब झूठ ।। ६७॥ तस्मिन् याते जहिहि हृदयोद्धे गदां शोकमालाम् स्नाहि, स्वान्तं प्रशमय. नवं धत्स्व कासश्च, भुड्.श्व संसारेऽस्मिन भव भवगतः को न कस्य प्रियोऽभूत् ज्ञात्वा, चित्तं धृतिविगलितं मा कुरुष्वात्मनीनम् ।।६।। अन्वय-अर्थ-हे बेटी ! (तस्मिन् यात) नेमी में चल जाने पर तुभ (हृदयोगदां शोकमालो जहिहि) हृदय को प्रशान्स अनाने वाली शोकमाला को छोडो, (स्त्रान्त प्रशमय) मन को शान्ति में लामो (स्नाहि) नहायो धोत्रो ( नवं वासः घरस्व) नवीन वस्त्र पहिलो और (भुरुक्ष्य) भोजन करो. (अस्मिन् संसारे भयभवगतः कः कस्य प्रियः न अभूत) यह तो संसार है. भव भव में कौन किसका यहां प्रिय नहीं हुआ (झाल्वा श्रात्मनीनं चितं धृतिविगलितं न कुरुष्व) ऐसा जानकर अपने चित्त को धर्य से रहित मत करो। इसी को शान्ति में प्रात्मा का--तुम्हारा-हित समाया हुना है। भावार्थ-बेटी ! यह तो संसार है । हर एक जीव के हर एक जीबके साथ भच २ में नाते होते रहते हैं । कौन किसका प्रिय नहीं बना, कौन किसका शत्रु नहीं बना । अतः धैर्य धरो-नहामो घोमो और सुन्दर बस्त्र पहिरो और रुचि के अनुकुल खाना पीना करो. चित्त की शान्ति ही सब दुरखों को दूर करने वाली होती है। गये हुए स्वामी की बेटी ! अब क्यों चिन्ता करती है चिन्ता बिता तुल्य है इससे चैन चित्तकी जलती है छोड़ इसे, यह समझ कि यहां पर कौन किसी का नहीं हुआ भब भर में प्यारा, पर न्यारा हो होकर के विदा हुना बीती वातों को न चितारो थे पायों के नातेपाते जाते रहते हैं, ये अणस्थायी, नहि टिक पाते सोच समझा कर यों निज मन में चित को म्लान बनायो ना रहो पूर्ववत् स्वस्थ नहानो धोयो खानो, रोम्रो ना ।।८।।
SR No.090527
Book TitleVachandutam Uttarardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages115
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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