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________________ वचनदूतम् का चित्तः ) हर्ष में, जोक में एवं पराभव में इनके शरीर में और वित्त में किसी प्रकार का विकार नहीं होता। अपने को (वीरमन्याः अपि च पुरुषाः) वीर मानने काले पुरुषों को भी (कामेन यत्र दग्धाः) कामदेव ने जहां नाकों बने चबवा दिये(तस्यां नाय नेमिनाथः मदन विजयी जातः) उसी नारी में ये नेमिनाथ भवन विजयी बन गये हैं । ५० भावार्थ – ये नेमिनाथ - समता के उपासक हैं और विकार से विहीनमन वाले हैं। जो अपने श्रापको सब से अधिक बलशाली मानते हैं ऐसे में वीराग्रणी भी जिस नारी के समक्ष कामदेव के द्वारा नतमस्तक कर दिये जाते हैं उसी नारी में ये महात्मा नेमिनाथ कामदेव को नतमस्तक कर रहे हैं । निज पथ पर हैं अडिग नेमिनाथ भगवान् सुनकर भी राजुल ब्यथा मन नहिं भयो म्लान उत्तर भी देते नहीं ये हैं ध्यानारूढ हम इनसे अब क्या कहें जाने ये सब गूढ अविचल मन लख नेमि का रागविहीन प्रवीण लोट गये सब निजसदन बन कर वंदन मलीन ||१५|| —— पितृपुग्यो मिथः संभाषणम् राजीमध्या तविवर्माखलं नेम्युदन्तं निशम्य स्वाभिप्रायः स्वहित करणे पितृपार्श्वे प्रशान्त्या प्रोक्तः श्रुत्वा तमथ पितरों दुःखितौ सावभूताम् ऊचाले तौ प्रियपतिपथे पुत्रि | यानं न योग्यम् ||६६ || श्रश्वय- अर्थ - ( राजीमत्या) राजीमती ने (अखिलं तदिम् नेम्युदन्तं निशम्य ) करके उसने (प्रशान्त्या ) जब पूरा का पूरा यह नेमिनाथ का वृत्तान्त सुना तो सुन बहुत अधिक शान्ति के साथ (पितृपा ) पिता माता के समक्ष ( स्वहित करणे ) आत्मकल्याण करने में ( स्वाभप्रियः ) अपना अभिप्राय प्रकट किया (अथ तं श्रुत्वा ) राजुल के अभिप्राय को सुनकर (तो पितरी दुःखितो प्रभूनाम् ) वे उसके माता-पिता दुःखित हुए और ( ऊचासे) कहने लगे ( पुत्रि ) हे बेटी ! (प्रियपतिपथे यानं न योग्यम् ) प्रिय पति के मार्ग का अनुसरण करना भभी तुझे योग्य नहीं है । भावार्थ- जब राजुल ने सखियों श्रादि के द्वारा नेमिनाथ का हाल-चाल सुना तो उसने बड़े विनम्र भाव से आत्मकल्याण के मार्ग में विचरण करने का अपना अभि
SR No.090527
Book TitleVachandutam Uttarardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages115
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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