SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपदेश ॥४०॥ अह समरविजय नइतडि भमंत, न हु पिक्खइ रयणुच्चय महंत । पुरओ विहु साटिय करकम्म, कह पावइ कत्थ वि सक्ख रम्म२९ सप्ततिर गिण्हित्तु गओ नणु भूमिनाह, इय नियमणि धरिय सुदुक्खदाह । पुरमयरगाम चोरी करत, सेो वट्टइ परधणकण हरंत ।। ३०॥ नियभायदेस लाइ निसंक, जण बंधइ रुंधइ सत्थ वंक । अह अन्नदिवसि निग्गहिय सेोय, सामंतिहि तकर जिम ससा य ।।३१।। निवअग्गइ आणिय तेहिं एस, सामिय इणि लुटिय सयल देस । जं रुच्चइ तं कीरउ इमस्स, इय जंपिय तेहिं नरवरस्स ।। ३२ ।। नरवइ मिल्हावइ जीवमाण, अप्पावइ बहुधणरयणदाण । सेा निच्छइ अइसइदृटुचित्त, नरवइ पुणि हियइ दयापवित ।। ३३ ॥ तसु वृत्त लेसु मह रयण रज्ज, अंते उरपुरहि न मज्झ कज्ज । सेा जाणइ नरवइ दिन्न केम, लिज्जइही लिज्जह अप्प एम ।३४। उद्दालिय भूयबलि जो गहेमि, कयकिञ्च सच अप्पओ गणेमि । सो बहु परिचक्कओ राय देहि, मुकउ तहा वि बंधवह ने हि ।। ३५ oil जण तत्थ भणई एरिस उवन्न, सिरिकित्तिचंदनरराय धन्न । जिणिपालिय सज्जण गुण अपार, लहु भायह किय जीवाक्यार ३६६ किहि छिल्लर किहिं सायर गभीर, किहि कायर किहि पुण धीर वीर । किहिं गयवर किहिं गद्दहउ साय, इय अंतर तिहि नागरइ लोय ।। ३७ ।। सुयभज्जरज्जमुज्छा अतुच्छ, वजंतउ सुरसरिसलिलसच्छ । संवेगरंग अंगीकरेइ, उव्विगचित्त निव परि वसेइ ।। ३८ ।। अह सुगरु तत्थ पउनाणजुत्त, पणसमिइ तीनिगुत्तीहि गुत्त । आयरिय पोहसुनामधिज्ज, पुरि समवसरिय चारी ससज 1३९। हरसियमण तस आगमणि राय, जाएविणु भत्तिहि नमई पाय । सगुरूवएस कन्निहि धरेइ, वय बारसेव अंगीकरेइ ।। ४० ।। मह पुच्छइ नियबंधवचरित्त, कहमेस सामि बहुदोसजुत्त । उल्लवइ गुरू वि हु महरवाणि, पुहवीसर निसुणइ इकझाणि ।। ४१ ।। ।।४०
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy