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________________ उपदेश-lot माहणिय पाडिओ कुमरो । महनवसायवसा मरित्तु पत्तो महानरयं ।।१२४।। तत्तो मच्छे सु भमाडिऊण बहुकालमाब-XI | समतिकाः ईहिँ भिसं । दुक्खीकओ कुबेरो कम्मपरीणामभूवालो॥१२५॥ उप्पाइयवं नयरे महापुरे तं धणड्ढसिट्ठिस्स । पउमाभिहाणपुत्तं संपन्न रूवरेहाए ।।१२६।। युग्मम् ॥ जाया सिसुत्तणेवि हु माया मायाइगो मणोमज्झे । तस्स बहुलित्तिनामेण नंदिणी | रागकेसरिणी ।।०२011 जनमओ मिगुवागं बचइ संचइ सुखाइयं विविहं । खायइ पियइ सयं सोनन्स देइ लेसपि २५४|| ॥१२८।। बोलइ महुरे वयणे नयणे नीरेण भरइ मायाए । जइ बडुयरो जाओ तो बंचइ मायरं पियरं ॥१२९।। भोलवइ भइणिभत्तिजयाइ विज्झमई भाउएबिनिए । उज्झायमवि पढ्तो धुत्तयविज्जाइ धुत्तेइ ।।१३०॥ जइ जाइ जणणिसत्थे जिणहरमेसो अईवमाइलो। ता जिणथुइं भणित्ता दिद्धि वंचित्तु सव्वेसि ।।१३१।। पविखवइ मोयगाई कक्खाए बहुलियाइ सिक्खाए । चोरइ य घंटकलसाइ हत्थपयलाहवुलोलो ॥१३२|| ताडिज्जतावि भिसं न मन्नई चोरियाइवत्थूणि । मभावं न हु भासइ सहोयरस्सावि कस्सेसो ॥१३३॥ अन्न जणं सयणं वा नहु मिलइ कपि निमो दंभी ! अइउबेइयचित्तेहि माइपियरेहि सो कइया ।।१३४॥ नीओ गुरूण तीरं भणियं तेसि च तेहि पुत्त जहा । भयवं अम्हाण कुले कम्मयरोवि हु न एरिसओ ।।१३५।। जाओ मायाबहुलो बहुलोभाऊरिओ रि ३८व सुओ। तो तह कुणह पसायं जह मुंचइ एस माइत्तं । २५४॥ ॥१३६॥ तत्तो गुरूहि करुणाइ देसणा कबडकूडनिवणी । बिहिया हियासएहि सएहि कोहि तेण सुया ।।१३७।। मायावी जइबि जणो न हु अवराह करेड़ कस्सावि ! न हू विस्ससणिज्जो तहविहु कस्सवि सप्पोच्च सो हवइ ।।१३८।। मायाविणो जणा इह परजम्मे होणजाइक्सेसु । उप्पजंति निहीणा दीणा दारिदिया दुहिया ॥१३९।। तो कम्मपरि
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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