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________________ सप्रतिका उपदेश- मिलिओ नायरलोओ सोओवगओ करेइ विन्नत्ति । एसो हु रायधम्मो गब्भवई नेव हतब्वा ।।११०॥ पसवइ जाव न बालं तात पयत्तेण दरिकाशा। अह तमिओगिगेहं भूवइवयणेण नेऊणं ॥११॥ लोएण पसवसमयं जाव नियंतियघरोयरे धरिया । अह दारयं पसूया भूयाहिग उव्व कंपतणू ॥११२॥ तक्खणमेवाणीया भीया रायंगणम्मि गुणहीणा । आरक्खगाण दिट्टि बंचित्ता ताव नणु नट्ठा ।।११३।। ||१४०11 मुणियं भूमीव इणा भिसं गवेसावियाबि नो लद्धा । तो आइ8 रन्ना तत्तणुओ पालियबो य ॥११४।। Mo दिना पंचसहस्सा तपरिवालणकए धणस्समुणा । सो पंसुलीइ तणओ दुक्ख संवडिओऽवि मओ ।।११५।। अह सावि हु मरिऊणं तम्माया पावकम्मओ जाया। तत्थेव पुरे सूणाहिवत्तणे तस्स तो रना ॥११६।। तस्से व बालगस्स य दवावियं दविणजायमखिलंपि । पंचसयाणं सो नाहत्तं सूणाण पालेइ ॥११७॥ कुणमाणो तारिसजीवधायपमुहाई पावकजाई। पंचत्तं पावित्ता पूरित्ता पायगेणापं ॥११८॥ D गोयम सत्तमपुढवीअपयट्टाणम्मि पस्थडे पत्तो। सावजायरियजिओ परिवरिओ पावकम्मेण ॥११९।। तित्तीससागराई तत्थ पगाढाउ घोरवियणाओ। विसहंतो दुसहाओ उव्वट्टित्ता तओऽवि पुणो ।।१२०॥ संजाओ अंतरदीवगेसु एगोरुगाण जाईसु। तत्तोऽवि हु मरिऊणं अवइन्नो तिरियजोणीए ॥११२।। नारयसरिसदुहाई अणुहविउं बच्छराइं छव्वीसं । निहणं पावित्तु तओ उप्पनो बासुदेवत्ते १२२॥ तत्थवि बहुआरंभ घणपात्रपरिग्गहं करित्तु पुणो । सत्तमपुढवि पत्तो लित्तो घणपादपंकेण ।।१२३॥ शा॥१४०॥
SR No.090524
Book TitleUpdeshsapttika Navya
Original Sutra AuthorKshemrajmuni
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year
Total Pages486
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size12 MB
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