________________
QORURGIU GORAN 5 अथ तृतीयस्तरंगः
म
योग्या एवं धर्माधिकारिण इत्युक्तं, योग्यस्वरूपं चाऽयोग्यस्वरूपनिरूपणे सुज्ञानमिति र प्रयमत उपदेशाऽयोग्यानाद ॥ १ ॥
रत्तो छुट्टो मुढो । पुब्धि बुग्गाहियो अचत्तारि ॥ नुवये सस्त अणरिहो । अहवा इसपहिं बुझंति ॥३॥
योग्य मनुष्योज धर्मना अधिकारी उ, एम पूर्व कहळू में हव ने योग्यतुं स्वरूप अयोग्य खल्य निरूपाए करवायी मारी गत जणाय डे, माटे पहला उपदेशन अयोग्य एवा मनुष्याचं स्वरूप कहे च ॥१॥
गगी, इंपी, मूढ तथा प्रयपीज समायो, ए चार जानना मनुष्यो नुपदेशने लायक होना । नयी, अथवा नो (कोई पण प्रकारना चमत्कार आदिक) अतिशयोगी बोध पाम जे. ॥२॥
ENCETAMATAFATARNAACHARYANA KM6:..:.