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________________ तथा अनिष्टं दुःखं डुःखनिमित्तं च अधिव्याधिव्यसनशाकेष्ट त्रियोगाऽनिष्टयोग देवताद्युपद्रवदारिद्यादि, तत् हरति, स्वाराधकगतं परगतं उज्जयगतं चेत्यनिष्टहरण स्तस्मिन् ॥ ८ ॥ तंत्र स्वराधकगतं यथा सुदर्शनश्रेष्टिधम्मिल्लविद्यापतिचंदनबाला दिनां शीक्षतपोदानादिधर्मः ॥ ए ॥ परगतं यथा तीर्थकरधिर्यादीनां तह तपः, यथा निजस्नानजञ्जनिखिल्लनर तिर्यक् सर्वरोगाद्युपड वापहर्तृ स्वकरस्पर्शश्रीलक्ष्मण हृदय प्रविशक्तिवित्रा सिविशल्यादीनां च प्रागूनवायाची तपः ॥ १० ॥ ? (की में धर्म कश तोके) अनिष्ट एवं दुःख ने तुरूनां निमित्तो, जेवांके आधि, व्याधि, व्यसन, शोक, नो (बाबांना) वियोग अनि (शत्रुनी) संयोग, दुष्ट ग्रह तथा देवता आदिकना उपद्रवो तया निर्धनता आदिक, तेने जे हरे थे, अर्थात स्वाराकगत दुःखने, परगत दुःखने अने उयगत दुःखने जे हरे ने धर्मनिने हरनारी कहवाय. एका तेतिमी (यत्न करो ?) ॥ ८ ॥ पोताना जत्तना) संबंध सुदर्शन शेठ मिनविद्यापति तथा चंद्रनवाला मांगना ( परना दुःखने हरखाना संबंध आदिकांना (अनुक्रमे ) शील, तप तथा दानादिक रूप धर्म जावी. ॥ ए ॥ तीर्थकर महाराजना तथा बधवाळा महामुनि आदिकांनी नेवा प्रकारनो तप जोवो; जम पोताना स्नानना जलथी सर्व मनुष्य तथा तिथंचांना सर्व प्रकारना रोग आदिक उपद्रवने हग्नार तथा पोताना हायना स्पर्शयी श्री अनुमाना हृदयमांसी शक्तिने दूर करनार एवं विशव्या आदि कोनो पूर्व जवादिकां करया तपनो प्रजान जाए वो ॥ १० ॥ श्री उपदेशरत्नाकर.
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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