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________________ I तथाहि--यागहोमादि — कर्माणानि कुर्वतां ॥ वापीकूपतडागादीन्यपि पूर्त्ता - न्यनेकशः || २ || पशूपघाततः स्वर्ग — लोकसौख्यं च मार्गतां ॥ द्विजेभ्यो जोजनैर्दन्तैः । पितृतृप्तिं चिकीर्षतां ॥ ६ ॥ घृतयोन्यादिकरणैः । प्रायश्चित्तविधायिनां ॥ पंचस्वापत्सु नारीणां । पुनरुद्घाहकारिणां ॥ ए ॥ अपत्याऽसंनवे स्त्रीषु । दोजापत्यवादिनां ॥ सदोषाणामपि स्त्रीणां । रजसा शुद्धिवादिनां ॥ ए८ ॥ श्रेयोबुद्ध्याध्वरहत—वागशिश्नोपजीविनां ॥ सौत्रामण्यां सप्ततंतौ । सीधुपानविधायिनां ॥ एए ॥ वेळी यज्ञ, हवन आदिक इष्ट कमने करनारा, तथा नेक एवां वाव कुत्रा तया तलाव आदिक पूर्वने पाय करनारा || ५५ || बळी पशुओनी हिंसाथी स्वर्ग लोकना सुखनी मानी करनारा, ब्राह्मणे मत्ये जोजन देने पितृ ओनी वृप्ति करवानी इच्छा करनारा ॥ ५६ ॥ घृतनी पनि आदिक करीने प्रायश्चित्त करनारा, पांच प्रकारनी आपदाओ पते ते पुनर्विवाह करनारा ॥ ५७ ॥ खीने संतान न होने छते क्षेत्रजयी (गोत्री थी ) पुत्र उत्पन्न करवानुं कनारा, दोषयुक्त स्त्रीओनी पण रजयी शुद्धि कहेनारा ॥ ५८ ॥ श्रेयनी बुद्धियी यज्ञ करनारे हणेला बकराना लिंगी आजीविका वनावनारा, सूत्रामणी तथा सप्ततंतु यहां मदिरापान करनारा || २५ | * उक्त कार्योंने टापूर्त कहे से. * पोतानी प्रज्ञाची पोतानी श्री साथै गोत्रम अथवा परपुरुषना संजोगयी उत्पन्न ययेन्ना पुत्र 'क्षेत्र, कवाय जे. ( भावी आज्ञा देनारों शाल व प्रमाणिक होय तेज विचारवा योग्य वे ) ने संबंधी मनुस्मृतिमा विवेचन है. श्री उपदेशरत्नाकर,
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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