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नत्र प्रथमा संग्रामकाले समुपस्थिते सामंतादीनां ज्ञापनार्थ वाद्यत, द्वितीया पुनरागंतुके कस्मिंश्चित्प्रयोजने समुद्लूते बोकानां सामंतादीनां परिझापनाय ॥ ५ ॥ तृतीया कौमुदीमहोत्सवात्सवज्ञापनार्थ, ततो ॥ तिमिवि गोसीसचंदणमईतो देवतापरिग्गाहिया ॥ ॥ तो तस्स चनयी लेरी असिवप्पसमणी, तीसे नप्पनी कहि. जय ॥ १ ॥ तेणं काढेणं तेणं समएणं सक्को देविंदो सो तत्य देवोगे सुरमज्के वासुदेवस्स गुण कित्तणं करे ॥ ए॥ अहो उत्तमपुरिसा एए अवगुणं न गिलैंति, नीएण य जुद्धेए न जुमंति; तत्य एगो देवो असतो आगो ॥ ए३॥
श्री नपदेशरत्नाकर.
तेमा पहली मग्राम मंधि वायत आव्ययी मामंत आदिकाने जाण थवा मांट गामवामां आवे |, वीजी जेरी कोई पराणो आध्ययी, अथवा कंक प्रयोजन पझ्येयी झोका नया मामन आदिकाने जाण 1 थवा पाटे वगामाय जे || || तथा त्रीजी. कौमुदी महोत्सव आदिक उन्मत्र जाणावा माटे वगामाय ने 81
त्रणे जेरीओ देवनाधिधिन नया गोशीर्षचंदननी बनावेसी हनी॥ | बळी नेनी पामे उपद्रवो नाश करना। चायी जेरी हती, ननी जन्पनि कहे छ | ए१॥ ते काले क्या ते ममयंने विपे देवानी म्बामी इंद्र त्यां देवनाकमां देवोनी महि वामदेवना गुणानुं वर्णन करवा लाग्यो । २॥ के, अहो! ननम पुरुषी अवगुण प्रहार करता नथी, * नेम नीच युद्रथी युद्ध करता नयी; परनामा त्यो एक देवन ने बचनपर श्रका नहीं आवाथी ने वासुदेव पाम आव्यो ।। ३ ।।
* फक्न न्याय युक्त युदयीन युद्ध करे है,