SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ...८००००००० एतानि शिष्ययोग्याऽयोग्यत्वप्रतिपादकान्युदाहरणानीति ॥ ॥ सेझत्ति. शैनः मुद्रप्रमाणः पापाणविशेषः, घनो मेघः, शैवश्च घनश्च शैवघनः, तदाहरणं प्रथम ॥३॥ कुटो घटः. चानणी प्रतीता परिपूणकः सुघरी चिटिकागृहं. हंसमहिषमेयमशकजोका विकाव्यः प्रतीताः ॥ ४ ॥ जाहक सेहुन्नकः. गौः नेरी पानी च प्रतीताः ॥ ५ ॥ नदाहरणं च हिधा नवनि, चरितं कठिपतं च, नक्तं च-चरियं व कप्पियं वा आहरणं इविहमेव पन्नत्तं, अस्थरस साहणठा इंधणमिव ओयणटाए ॥६॥ .. .............. थी उपदशरत्नाकर ___ पूर्वी रीत इपर वर्णवेशां ददाहरण दियना योग्य प्रयोज्यपाने प्रतिपादन करनाग छ ।। २ ॥ ३ब एटा मग जेत्रमा पाषाणविशेष, तथा इन एटस मंच, अर्थात् मगनी पापाण ने मेघ, ए पेहवं उदाहरण | जाण ॥ ॥ कुट एटने यमो. चाक्षणी प्रसिद्ध के परिपालक एवं मुघरी नामनी चकझीओनी मागो, हंस, है। पामो, घटो, मशक, जळो. तथा विज्ञामी, ए प्रसिद्ध ॥ ४ ॥ नाहक एट्ले शेगे, गाय नया पानोरी एटो । वारण ए प्रसिद्ध ने ॥ ५ ॥ व उदाहरण घे कारन होय में एक चरित एटो सार्चु बनेयं तथा वीजें कपिन कयु ने के जेम चावल माटे इंधन, तेम अर्थन साथवा माटे चग्निरूप अन कठिपन एम वे प्रकारर्नु ३. नदाहरण कहे छ ॥ ६ ॥ १९८५६५ < < ६५ ५
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy