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________________ सार्यवाहो वेति एष पटकृत्, ततोऽस्य श्रद्धा जाता, अपरदिवसे नमन् सार्यवाहेनानापितः, गतदिनयोः किं नागतः, तुष्णीके तस्मिन् ज्ञातं नूनमेय पटनोजीति ॥ ६ ॥ ततस्तस्य बहु दत्तं तेन, पुनों दिवसावजीर्णेन स्थितः, पटनोजीति ओकोऽप्यादरवाननूत, ततो निमंत्रयमाणस्याऽप्यऽन्यस्य पिंझ न गृह्णाति, लोको लणत्येष एकपिमिक इति ॥ ६३ ॥ सार्यवाहेनानाणि अन्यस्य माग्रहीयावन्नगरं गम्यते तावदहमेव दास्ये ; प्राप्तो नगरं, सार्थवाहेन निजगृहे तस्य मउः कारितः, ततः स शिरो मुमयित्वा कापायिकवस्त्राणि परिधत्ते ।। ६३॥ श्री उपदेशरत्नाकर न्यार मार्यवाहे जाण्यु के, एण उट्ट कया हशे, तेथी नन ( तेनापर ) श्रधा यःः बीज दिवस || | (निशा माट ) ज्यारे ने जमवा नाग्या, न्यार मार्यवाहे नेने बोनावीने पृन्यु के, गया व दिवममा नुं केम न आल्यो । न्यारे ने मौन रहवायी नणं जाएयु के, म्वरेग्वर पा उह करनाग ने ॥६॥ नयी नेने नेणे घj आप्युंबळी 8 अजीर्ण थवायी नवे दिवस शेजी गयो, अने त्यारथी आ अननुं पार करनागे , एम जणावायी झोको तेनो आदर सत्कार करना नान्या: पत्री वीजा ओको नने निमंत्रण करे, नाप ने वीजानो पि ग्रहण | करे नहीं; त्यार सोको कहवा झाग्या के. आ एक पिकी वे ॥६॥ पछी मार्यवाह नेने का के, हवे ज्या| मुधी आपणे नगरमां जये, न्यां मुधी नारे वीजाना पिंक बेचो नहीं: हुंन नन प्राप्या कशा पछी ने नगरमा पहाच्या. त्यां सार्थवाहे पोताना घरमा नन मन कगवी आप्या, अन त्याग्दी न मानक मुंभावीने जगवां वो पहेवा वान्या ॥ ६४ ।।
SR No.090523
Book TitleUpdeshratnakar
Original Sutra AuthorMunisundarsuri
AuthorMunisundarsuri
PublisherJain Dharm Vidya Prasarak Varg
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size11 MB
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