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________________ . 272] तदुपरान्त द्वितीय समुद्र सी विस्तृत सिन्धु नदी को जीतकर इन्द्र की तरह वैताढय पर्वत के अधिष्ठायक देवों को पराजित कर दिया। उन्होंने स्वयं कृतमाल देव को जीत लिया और सिन्धु के पश्चिमी भूभाग को उनके सेनापति ने जय कर लिया। वे दीर्घबाहु तमिस्रा गुहा में प्रविष्ट हए और उससे निकल कर आपात नामक किरात देव को पराजित कर दिया। उनके सेनापति ने सिन्धु नदी के पश्चिम स्थित भूभाग को जीत लिया और हिमवंत पर्वत के अधिपति को उन्होंने स्वयं जीत लिया और ऋषभकूट पर कांकिनी रत्न से स्वनाम को उत्कीर्ण किया। गङ्गा पूर्व के भूभाग को उनके सेनापति ने जय कर लिया। उन्होंने स्वयं विद्याधरपति और खण्डप्रपाता गुहा के द्वार पर रहने वाले नाटयमाल देव को जीत लिया। तदुपरान्त वैताढ्य पर्वत का परित्याग कर खण्डप्रपाता गुहा से निकल कर सेनापति द्वारा गङ्गा के पूर्व भाग को जय करवाया। जब वे गङ्गा के मुहाने पर स्थित थे तभी नैसर्प आदि गङ्गा के मुहाने पर रहने वाली नवनिधि उनके पास आई और उनकी वश्यता स्वीकार कर ली। इस प्रकार चक्रवर्ती का समस्त वैभव प्राप्त कर वे स्व-नगर को लौट आए । वहाँ देव और राजाओं ने उन्हें चक्री पद पर अभिषिक्त किया। दीर्घकाल तक भरत के छह खण्डों पर आधिपत्य कर उन्होंने चक्रवर्ती का वैभव भोगा और तदुपरान्त संसार से विरक्त होकर मुनि दीक्षा ग्रहण कर ली। (श्लोक १४-२६) - उन्होंने ३०० वर्ष युवराज रूप में, ३०० वर्ष राजा रूप में और ४०० वर्ष व्रती रूप में व्यतीत किए। (श्लोक २७) व्रत पालन और ३००० वर्षों की परमायु पूर्ण कर घाती कर्मों के क्षय हो जाने से केवलज्ञान प्राप्त कर अक्षय आनन्द रूप मुक्ति पद को प्राप्त हुए। . (श्लोक २८) राम-लक्ष्मण दशानन तीर्थङ्कर नमि और चक्रवर्ती हरिषेण एवं जय इन छओं का जो चरित्र वर्णित हुआ है वह आप सबों के कर्ण को आनन्द प्रदान करें। (श्लोक २९) त्रयोदश सर्ग समाप्त सप्तम पर्व समाप्त
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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