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अङ्गीकार करने में समर्थ नहीं हो तो यति धर्म स्वीकार करने की इच्छा रख कर सम्यक्त्व सहित बारह प्रकार का श्रावक-धर्म पालन करने के लिए तत्पर हो जाए। प्रमाद-परित्याग कर वह दिन-रात मन-वचन-काया से धर्म का पालन करे । ब्राह्म मुहूर्त में उठकर पंच परमेष्ठि मन्त्र का जप करे और सोचे मेरा धर्म क्या है ? मेरा कुल कैसा है ? मेरा व्रत क्या है ? तदुपरान्त प्रातः कृत्य शेष कर गहस्थित जिन-बिम्ब की पूष्प-नैवेद्यादि से पूजा और स्तवन पाठ करे और यथाशक्ति प्रत्याख्यान कर मन्दिर जाए । मन्दिर में प्रवेश कर जिन-बिम्ब को नियमानुसार तीन प्रदक्षिणा दे और फिर पुष्पादि द्वारा पूजा कर उनकी स्तुति का पाठ करे। तत्पश्चात् गुरु के सन्मुख दोष परिहार और सेवा का सङ्कल्प ले । गुरु को देखने मात्र से उठकर खड़ा हो जाए, उनकी ओर बढ़े फिर हाथ जोड़कर भक्तिपूर्वक उन्हें बैठने के लिए आसन दे। उनके बैठ जाने पर उनकी पर्युपासना करे। उनके जाने की इच्छा प्रकट करने पर उन्हें कुछ दूर तक आदरपूर्वक उनके पीछे-पीछे चलकर पहुंचाने जाए। इसी प्रकार गुरु महाराज की भक्ति की जाती है ।
(श्लोक ६५-७५) ____ 'फिर घर लौटकर विवेकपूर्वक अर्थचिन्तन इस प्रकार करे जिससे धर्म का विरोध न हो। तदुपरान्त मध्याह्न में फिर पूजा करे और पूजा के पश्चात् शास्त्रवेत्ताओं के सम्मुख बैठकर शास्त्रों के अन्तनिहित गूढ़ अर्थ समझने का प्रयास करे। सन्ध्या समय जिन-बिम्बों की पूजा और प्रतिक्रमण कर स्वाध्याय करे। फिर यथा समय देव गुरु और धर्म को स्मरण कर स्वल्प निद्रा ग्रहण कर ब्रह्मचर्यपूर्वक रहे । यदि नींद टूट जाए तो नारी देह का स्वरूप और महर्षियों द्वारा उनका परित्याग कर दिया गया था-उन कथाओं का चिन्तन करे । नारी देह बाहर से देखने में सुन्दर होने पर भी मल-मूत्र, विष्ठा, श्लेष्मा, मज्जा, अस्थि आदि अपवित्र वस्तुओं से पूर्ण है। अनेक स्नायुओं से सिलाई किए हुए चमड़े की थैली जैसा है। यदि नारी-शरीर का वहिर्भाग भीतर और अन्तर्भाग बाहर आए तब कामी पुरुष के उस शरीर को गिद्ध, शृगाल और कुत्तों के हाथ से बचाना कठिन हो ताता है। यदि कामदेव नारी को शस्त्र रूप में व्यवहार कर इस जगत को जीतना चाहे तब वे मूढ़ बालक की तरह हलके शस्त्र का व्यवहार क्यों