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________________ [251 स्वयं की निन्दा की और वैराग्य प्राप्त कर माता-पिता की आज्ञा लेकर महाबल मुनि से दीक्षित हो गए। अनङ्गलवण और मदनांकुश दोनों कन्याओं से विवाह कर बलभद्र और वासुदेव के साथ अयोध्या लौट आए। (श्लोक ९७-१०५) एक दिन राजा भामण्डल अपनी नगरी के राज-प्रासाद की छत पर बैठे थे। बैठे-बैठे उन शूद्ध बुद्धि वाले के मन में यह विचार आया वैताढय की उभय श्रेणियों पर मेरा अधिकार है। अस्खलित गति से क्रीड़ा करता हुआ मैं सर्वत्र विहार कर सांसारिक सुख भोग करता हूं। अब दीक्षा ग्रहण कर पूर्ण वांछित बनू । ऐसा विचार करते समय आकाश से उनके मस्तक पर बिजली गिरी। फलत: वे उसी समय मृत्यु को प्राप्त हो गए और देवकुरु में जाकर युगलिक रूप में उत्पन्न हुए। (श्लोक १०६-१०८) एक बार हनुमान शाश्वत चैत्यों की वन्दना करने मेरु पर्वत पर गए। वहां उन्होंने सूर्य को अस्त होते देखा। यह देखकर वे सोचने लगे, अहो इस संसार में उदय और अस्त सभी का होता है। सूर्य का दृष्टान्त इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस नाशवान जगत् को धिक्कार है। ऐसा सोचते हुए हनुमान स्व नगर को लौट गए। वहाँ जाकर उन्होंने स्व-पुत्र को राज्य देकर धर्मरत्न आचार्य से दीक्षा ग्रहण कर ली। उनके साथ अन्य साढ़े सात सौ राजाओं ने भी दीक्षा ग्रहण की। उनकी पत्नियों ने भी लक्ष्मीवती आर्या से दीक्षा ले ली। अन्ततः हनुमान मुनि ने ध्यान रूपी अग्नि में समस्त कर्मों को दग्ध कर शैलेशी अवस्था में मोक्षगमन किया। (श्लोक १०९-११३) हनुमान की दीक्षा लेने की बात राम ने सुनी। वे सोचने लगे-भोग सुखों का त्याग कर हनुमान ने कष्टदायक दीक्षा किस प्रकार ग्रहण कर ली ? सौधर्मेन्द्र राम के इन विचारों को अवधि ज्ञान से जानकर स्व-सभा में बोले, 'ओह ! कर्मों की गति बड़ी विचित्र है। राम-से चरम शरीरी मनुष्य भी इस समय धर्म पर अविश्वास कर रहे हैं; किन्तु इसका कारण है राम और लक्ष्मण का प्रगाढ़ प्रेम । राम के हृदय में लक्ष्मण के प्रति जो स्नेह है वह उनमें वैराग्य वृत्ति को उत्पन्न नहीं होने देता। (श्लोक ११४-११७)
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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