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सपरिवार रहते हैं ?'
(श्लोक ६९-७१) नारद बोले, 'समस्त विश्व में निर्मल चरित्र वाले तुम्हारे पिता राम जहाँ रहते हैं वह अयोध्या यहाँ से एक सौ साठ योजन
(श्लोक ७२) लवण नमस्कार कर वज्रजङ्ग राजा से बोला, 'हम वहाँ जाकर राम और लक्ष्मण को देखना चाहते हैं।' (श्लोक ७३)
वज्रजङ्घ ने यह बात स्वीकार कर ली। वहीं से अयोध्या जाना निश्चित हुआ। अतः पृथ राजा ने खूब धूमधाम सहित अपनी कन्या कनकमाला का विवाह अंकुश के साथ कर दिया।
(श्लोक ७४) लवण और अंकुश राजा बज्रजंघ और पृथु सहित वहाँ से प्रस्थान कर गएं । राह में आए अनेक देशों को जय करते हए वे लोकपुर नामक नगर के निकट पहुंचे। उस समय वहाँ धैर्य और शौर्य सम्पन्न कुबेरकान्त नामक अभिमानी राजा राज्य करते थे। उसको भी इन्होंने युद्ध में जीत लिया। वहाँ से चलकर उन्होंने विजयस्थली में भ्रातृशत नामक राजा को जीता। वहाँ से गङ्गा नदी अतिक्रम कर वे उत्तर में कैलाश पर्वत की ओर गए। वहाँ उन्होंने नन्दन और चारु राजा के देशों को जीत लिया। तदुपरान्त रुष, कुन्तल, कालाम्बु, नन्दि नन्दन, सिंहल, शलभ, अनल, शूल, भीम, भतरव कादि देशों के राजाओं को जय करते हुए वे सिन्धु नदी के तट पर उपस्थित हो गए। वहाँ भी वे अनेक आर्य-अनार्य राजाओं को जीतते हुए पुण्डरीकपुर लौट आए। नगरवासियों ने बज्रजघ को यह कहकर धन्यवाद दिया-धन्य है राजा बज्रजंघ जिनके ऐसे पराक्रमी भानजे हैं। नगर में इनकी शोभायात्रा निकली। अन्यान्य राजाओं से परिवत्त हए वीर लवण और अंकुश सुशोभित हो रहे थे। पुरवासी हर्षोत्फुल नेत्रों से उन्हें देख रहे थे।
(श्लोक ७५-८२) प्रासाद में आकर दोनों भाइयों ने विश्व-पवित्रकारी माता सीता के चरणों में प्रणाम किया। सीता ने आनन्दाश्रु से उन्हें अभिसिंचित कर उनके मस्तक को चूमा और आशीर्वाद दिया, 'तुम दोनों राम-लक्ष्मण बनो।'
(श्लोक ८३-८४) तत्पश्चात् लवण और अंकुश ने बज्रजंघ से जाकर कहा,