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नहीं कर दिया जाता तो उसी समय पिताजी के साथ दीक्षा ग्रहण कर लेता। मेरा हृदय संसार से विरक्त हो गया है। अब जबकि आप आ ही गए हैं तो उस राज्य को ग्रहण करें। अब मेरी राज्य करने की इच्छा नहीं है।'
(श्लोक ९८-१००) तब राम आँखों में पानी भरकर बोले, 'हे वत्स, तुम यह क्या कह रहे हो? हम तो यहाँ तुम्हारे आमन्त्रण पर आए हैं । तुम आज तक जिस प्रकार राज्य कर रहे थे उसी प्रकार करते रहो। राज्य सहित हम लोगों का परित्याग कर अकारण क्यों हमें विरह व्यथा देना चाह रहे हो ? पूर्व की तरह मेरी आज्ञा का पालन कर राज्य करो।' राम को इस प्रकार आग्रह करते देखकर भरत वहाँ से उठकर जाने लगे। लक्ष्मण ने उनका हाथ पकड़कर बैठा दिया। भरत ने व्रत ग्रहण करने का निश्चय किया है यह जानकर सीता विशल्या आदि ससंभ्रम वहाँ आई और भरत को व्रत का आग्रह भुलाने के लिए जलक्रीड़ा के लिए चलने का अनुरोध किया। उनका अत्यन्त आग्रह देखकर भरत को उनका आग्रह स्वीकार करना पड़ा।
(श्लोक १०१-१०५) इच्छा नहीं होते हुए भी भरत अपने अन्तःपुर सहित जलक्रीड़ा करने गए। विरक्त हृदय भरत ने एक मुहूर्त तक क्रीड़ा की। तदुपरान्त राजहंस की तरह सरोवर से निकल कर तट पर आए। उसी समय आलान स्तम्भ को उखाड़ कर भवनालङ्कार हाथी वहाँ आया। मदान्ध होते हुए भी भरत को देखने मात्र से ही वह मदरहित अर्थात् शान्त हो गया। भरत भी उसे देखकर आनन्दित हो गए।
__ (श्लोक १०६-१०८) उपद्रवकारी हाथी के बन्धन मुक्त होने की बात सुनकर राम और लक्ष्मण भी स्व सामन्तों सहित उसे पकड़ने के लिए तत्काल वहाँ उपस्थित हुए। हाथी पकड़ा गया। राम की आज्ञा से महावत उसे बाँधने के लिए स्व स्थान पर ले गए। उसी समय उन्हें देशभूषण और कुलभूषण नामक दो केवलियों के उद्यान में समवसरण लगाने का संवाद मिला। राम, लक्ष्मण और भरत सपरिवार उन्हें वन्दना करने गए।
(श्लोक १०९-१११) ___ वन्दना के पश्चात् राम ने पूछा, 'हे महात्मन्, मेरा भुवनालङ्कार नामक हाथी भरत को देखते ही मदरहित क्यों हो गया ?'