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था।
- (श्लोक ३५-३७) उस समय राम के मन में हुआ कि उनकी आत्मा अभी जीवित है। राम ने सीता को द्वितीय जीवन की तरह अपनी गोद में बैठाया। देव और गन्धर्व हर्षित होकर आकाश में हर्षनाद करने लगे – 'महासती सीता की जय हो।' हर्ष के अश्रुओं से चरण धोते हुए लक्ष्मण ने सीता के चरणों में प्रणाम किया। सीता ने लक्ष्मण के मस्तक को सूघा आशीर्वाद दिया, 'चिरंजीवी होओ, चिरानन्दी होओ, सदैव विजयी होओ।' तदुपरान्त भामण्डल ने सीता को नमस्कार किया। उसे भी उन्होंने मूनि वचनों की भाँति अनिष्फल आशीर्वाद देकर सन्तुष्ट किया। तदुपरान्त सुग्रीव, विभीषण, अङ्गद आदि ने भी अपने-अपने नाम बताकर क्रमशः सीता को नमस्कार किया। दीर्घ दिनों के पश्चात् चन्द्रप्रकाश से विकसित कमलिनी की तरह सीता राम के सान्निध्य में सुशोभित हई।
(श्लोक ३८-४४) . राम सीता सहित भुवनालङ्कार हाथी पर बैठकर रावण के महल में गए। सुग्रीवादि वानर वीर और विभीषणादि राक्षस वीर भी उनके साथ गए। राम हजार मणिस्तम्भयुक्त शांतिनाथ जिनालय में वन्दना की इच्छा से प्रविष्ट हए। विभीषण ने पुष्पादि सामग्री दी। उसी से राम, सीता और लक्ष्मण ने उनकी पूजा की।
। (श्लोक ४५.४७) विभीषण की प्रार्थना पर राम, सीता और लक्ष्मण सुग्रीवादि वानर वीरों सहित विभीषण के घर गए। विभीषण को सम्मान देने के लिए उन्होंने वहां परिवार सहित स्नान देवार्चन और भोजन किया।
(श्लोक ४८-४९) ___ तदुपरान्त विभीषण ने राम को सिंहासन पर बैठाया और दो वस्त्र धारण कर हाथ जोड़कर बोले, 'हे स्वामिन, यह रत्न सुवर्णादि का भण्डार, यह चतुरङ्गिणी सेना और इस राक्षस द्वीप को आप ग्रहण करें। मैं आपका सेवक हं। आपकी आज्ञा से मैं आपका राज्याभिषेक करना चाहता हूं। अतः मुझे आज्ञा देकर लङ्कापुरी को पवित्र और मुझे अनुगहीत करें।' (श्लोक ५०.५२)
। राम ने उत्तर दिया, 'हे महात्मा, लङ्का का राज्य तो मैंने तुम्हें पहले ही दे दिया था। तुम भक्तिवश वह कैसे भूल गए ?