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हूं। मैं तो दास की भाँति निरपराध हूं। मुझे छोड़ दें ।'
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( श्लोक २९२ - २९५)
शक्ति की बात सुनकर वीर हनुमान ने उसे छोड़ दिया । छोड़ते ही मानो शक्ति लज्जित हो गई हो इस प्रकार तत्क्षण अन्तर्धान हो गई । विशल्या ने पुनः लक्ष्मण की देह पर हाथ फेरा और धीरे-धीरे गोशीर्ष चन्दन का लेप लगा दिया । क्षत भर गया । लक्ष्मण नींद से जागे व्यक्ति की तरह उठ बैठे । राम ने आनन्द के अश्रु प्रवाहित करते हुए अनुज को आलिङ्गन में ले लिया ।
( श्लोक २९६-२९८ ) राम ने लक्ष्मण को विशल्या का समस्त वृत्तान्त कह सुनाया और स्वयं पर एवं अन्यान्य आहत सैनिकों पर विशल्या का स्नान जल छिड़कवाया | (श्लोक २९९ ) तदुपरान्त राम की आज्ञा से एक हजार कन्याओं के साथ विशल्या का विधिपूर्वक लक्ष्मण से विवाह कर दिया गया। विद्याधरों ने लक्ष्मण के इस आश्चर्यजनक नवजीवन प्राप्ति के लिए महामहोत्सव किया । ( श्लोक ३००-३०१ ) लक्ष्मण की जीवन प्राप्ति का संवाद पाकर रावण ने अपने उत्तम मन्त्रियों को बुलवाया और कहा 'मैंने सोचा था शक्ति के प्रहार से लक्ष्मण के साथ-साथ स्नेह के कारण राम भी मृत्यु को प्राप्त होगा । दोनों की मृत्यु से वानर भागकर स्व-स्व स्थान को चले जाएँगे और अनुज कुम्भकर्ण, पुत्र इन्द्रजीत आदि मुक्त होकर मेरे पास लौट आएँगे; किन्तु देव की विचित्रता से लक्ष्मण बच गया । अतः बताओ, कुम्भकर्ण और इन्द्रजीत आदि को मुक्त कैसे कराएँ ?'
( श्लोक ३०२ - ३०५ ) मन्त्रीगण बोले, 'सीता को मुक्त किए बिना कुम्भकर्ण आदि को मुक्त करवाना कठिन है। इसके अतिरिक्त कोई भयानक विपत्ति भी आ सकती है । हे स्वामिन्, जो वीर चले गए हैं उन्हें तो लाया नहीं जा सकता; किन्तु जो हमारे कुल में बचे हुए हैं उन्हें मृत्यु से बचा लीजिए। उनकी रक्षा के लिए राम से प्रार्थना करने के सिवाय अन्य कोई रास्ता नहीं है ।'
( श्लोक ३०६-३०७ ) मन्त्रियों का यह कथन रावण को अच्छा नहीं लगा । अत: उसने उनकी अवज्ञा कर सामन्त नामक दूत को यह कहकर राम के