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विशिष्ट सात प्राकार बनाए । पूर्व दिशा के द्वार पर क्रमशः सुग्रीव, हनुमान, तरकुन्द, दधिमुख, गवाक्ष और गवय रहे। उत्तर दिशा के द्वार पर क्रमशः अङ्गद, कूर्म, अङ्ग, महेन्द्र, विहंगम, सुषेण और चन्द्ररश्मि रहे। पश्चिम दिशा के द्वार पर अनुक्रम से नील, दुर्द्धर, मन्मथ, जय, विजय और सम्भव रहे। और दक्षिण दिशा के द्वार पर भामण्डल, विराध, गज, भुवनजित, नल, मन्द और विभीषण रहे। इस प्रकार राम-लक्ष्मण को घेरकर सुग्रीवादि योगी की तरह जागते रहे।
(श्लोक २४१-२४६) उसी समय कोई आकर सीता को बोला, 'रावण के शक्ति प्रहार से लक्ष्मण की मृत्यु हो गई है और अनुज के स्नेह से दुःखी राम कल सुबह मृत्यु का वरण करेंगे।' वज्र-निर्घोष से इस भयङ्कर संवाद को सुनकर सीता मूच्छित होकर पवन प्रताड़ित लता की भाँति गिर पड़ी। विद्याधरियों ने उनके मुख पर जल के छींटे डालकर उसकी चेतना लौटाई। तब वह करुण क्रन्दन करती हुई विलाप करने लगी-'हां वत्स लक्ष्मण, तुम अपने अग्रज को अकेला छोड़कर कहां चले गए? क्या तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बिना उनके लिए एक मुहूर्त भी जीवित रहना मुश्किल है ? मुझ जैसी अभागिन को धिक्कार है ! हाय, मेरे कारण ही देवतुल्य राम और लक्ष्मण इस स्थिति को प्राप्त हुए। हे धरणी ! तुम मुझ पर कृपा कर अपने गर्भ में स्थान दो। तुम दो भागों में विभक्त हो जाओ ताकि मैं तुम्हारे मध्य प्रविष्ट हो जाऊँ। हे हृदय ! तुम क्यों नहीं अब भी फटकर मेरे प्राणों को निकलने के लिए मार्ग दे रहे हो?'
(श्लोक २४७-२५२) सीता का ऐसा करुण-क्रन्दन सुनकर एक विद्याधरी के मन में दया उत्पन्न हो गई। वह अवलोकिनी विद्या से भवितव्यता देख कर सीता से बोली, 'हे देवी! कल सुबह ही तुम्हारे देवर लक्ष्मण अक्षताङ्ग होकर ठीक हो जाएँगे। तदुपरान्त वे और राम यहाँ आकर तुम्हें आनन्दित करेंगे।' विद्याधरी का यह कथन सुनकर सीता कुछ आश्वस्त हुई। वह चक्रवाकी की भाँति निनिमेष नेत्रों से सूर्योदय की प्रतीक्षा करने लगी। (श्लोक २५३-२५५)
आज मैंने लक्ष्मण को मार डाला यह सोचकर कुछ समय के लिए रावण के मन में सन्तोष हुआ; किन्तु थोड़ी देर के बाद ही