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192] है ? यदि नहीं बोल पा रहे हो तो इशारे से ही कुछ बताकर अपने अग्रज को प्रसन्न करो। हे प्रियदर्शन वीर, सुग्रीवादि तुम्हारे ये अनुचर तुम्हारा मुख देख रहे हैं, बोलकर या देखकर किसी भी प्रकार तुम उन्हें अनुगृहीत क्यों नहीं करते ? यदि तुम इस लज्जावश नहीं बोल रहे हो कि रावण तुम्हारे सामने से जीवित चला गया तो बोलो तुम्हारे इस मनोरथ को मैं तत्काल पूर्ण करूंगा। अरे ओ दुष्ट रावण, तू भाग कर कहां जा रहा है। मैं तुझे अल्प समय में ही मृत्यु-पथ का पथिक बना दूंगा।' (श्लोक २२५-२३०) . ऐसा कहकर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर वे उठ खड़े हुए। उसी समय सुग्रीव उनके सन्मुख आकर विनयपूर्वक बोले, 'हे स्वामी, अभी रात्रि है, रावण लङ्का लौट गया है। हमारे स्वामी लक्ष्मण शक्ति के प्रहार के कारण अचेत हो गए हैं। इसीलिए अभी इनकी चेतना को लौटाने का प्रयत्न करें। अब रावण को मरा ही समझ लें।
(श्लोक २३१-२३३) __राम पुनः विलाप करने लगे, 'ओह ! पत्नी का हरण हो गया। अनुज लक्ष्मण मारा गया; किन्तु यह राम अभी भी जीवित है। यह क्यों नहीं हजार टुकड़े हो गया ? हे मित्र सुग्रीव, हे हनुमान, हे भामण्डल, हे नल, हे अङ्गद, हे विराध और हे अन्यान्य वीरो! तुम सब अपने-अपने स्थान को लौट जाओ। हे विभीषण ! सीता हरण और लक्ष्मण की मृत्यु से तुम दुःखी हो जिसके कारण तुम अपना अभीष्ट अभी तक प्राप्त नहीं कर सके, उसे हे बन्धु, कल सुबह ही अपने आत्मीय रूपी शत्रु रावण को मेरे आत्मीय लक्ष्मण का अनुगामी होते देखोगे। तुम्हें कृतार्थ करने के पश्चात् मैं भी अपने अनुज का अनुसरण करूंगा। कारण लक्ष्मण के बिना सीता का भी मेरे जीवन में क्या प्रयोजन है ?' (श्लोक २३४-२३८)
विभीषण बोले, 'हे प्रभु, आप इतने अधीर क्यों हो रहे हैं ? इस शक्ति से मूच्छित व्यक्ति मात्र एक रात्रि ही जीवित रहता है । अतः रात्रि समाप्त होकर प्रभात होने के पूर्व ही मन्त्र-तन्त्र द्वारा लक्ष्मण के आघात का प्रतिकार करने का प्रयत्न करें।'
(श्लोक २३९-२४०) राम ने यह स्वीकार कर लिया। तदुपरान्त सुग्रीव आदि ने विद्या बल से राम और लक्ष्मण के चारों ओर चार-चार द्वार