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हो जाएगा ।
कर डाला । वह ध्वनि ऐसी थी कि लगता था ब्रह्माण्ड खण्ड-खण्ड ( श्लोक ४५-४७ ) रावण के असाधारण बलधारी प्रहस्तादि सेनापति और योद्धागण कवच पहन कर अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर युद्ध के लिए प्रस्तुत हो गए । कोई हाथी की पीठ पर बैठकर, कोई अश्व पर चढ़कर, कोई सिंह पर, कोई गधे पर, कोई रथारूढ़ होकर, कोई कुबेर की तरह मनुष्य की पीठ पर चढ़कर, कोई अग्नि की तरह भेड़ पर चढ़कर, कोई यम की भांति भैंसे पर चढ़कर, कोई रेवन्तकुमार की तरह अश्वारूढ़ होकर, कोई देवता की तरह विमान में बैठकर ऐसे एक-एक कर अनेक युद्धकुशल वीर रावण के निकट एकत्रित हो गए । ( श्लोक ४८-५१)
रत्नश्रवा का ज्येष्ठ पुत्र रावण क्रोध से लाल आँख किए युद्ध के लिए सज्जित होकर विविध आयुधों से पूर्ण रथ पर जाकर बैठ गया । द्वितीय यम-सा कुम्भकर्ण हाथ में त्रिशूल लेकर रावण के
पास पार्श्वरक्षक बनकर खड़ा हो गया
।
भी रावण के दोनों ओर खड़े
हो गए - वे
इन्द्रजीत और मेघकुमार ऐसे लग रहे थे मानो वे उसके अन्य पराक्रमी पुत्र, कोटि-कोटि मरीच, मय और सुन्द आदि भी वहां
असंख्य सहस्र अक्षौ -
।
रावण की दोनों भुजाएँ हों सामन्त और शुक, सारण, उपस्थित हो गए । रण- कौशल में चतुर ऐसी हिणी सेना से दिशाओं को आवृत करता हुआ निकला |
रावण लङ्का से बाहर
था,
( श्लोक ५२-५६ ) कोई अष्टापदकोई हस्ती, कोई
रावण की सेना में कोई सिंह- ध्वजा युक्त ध्वजा से युक्त था तो कोई चमरू- ध्वजा से युक्त, मयूर, कोई सर्प, कोई मार्जार तो कोई कुकुर ध्वजा युक्त था । किसी के हाथ में धनुष था, किसी के हाथ में खड्ग, किसी के हाथ में भुशुण्डी, किसी हाथ में मुद्गर, किसी के हाथ में त्रिशूल, किसी के हाथ में परिघ, किसी के हाथ में कुठार तो किसी के हाथ था। वे प्रतिपक्षियों को बार-बार आह्वान कर रणस्थल में चतुरता के साथ विचरण कर रहे थे । ( श्लोक ५७-६१ ) रावण की विशाल सेना वैताढ्य गिरि-सी लग रही थी । उसकी सेना ५० योजन भूमि को आवृत कर अवस्थित हो गई ।
में पाश
( श्लोक ६२ )