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________________ 156] पुत्र, मेरा पति, मेरा देवर और चौदह हजार योद्धा सभी मारे गए। भाई, तुम्हारे जीवित रहते अभिमानी शत्रुओं ने तुम्हारी दी हुई पाताल लङ्का हमसे छीन ली। इसलिए पुत्र सून्द को लेकर प्राणरक्षा के लिए तुम्हारे पास आई हूं। तुम्हीं बताओ, अब मैं कहाँ जाकर रहूं?' (श्लोक ११९-१२४) तब रावण ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा, 'तुम्हारे पुत्र और पति की हत्या करने वाले को मैं शीघ्र ही मार डालूगा।' रावण इस शोक और सीता की विरह-वेदना में शिकारभ्रष्ट बाघ की तरह आर्त होकर बिछौने में लौट रहा था। उसी समय मन्दोदरी ने आकर उससे कहा, 'हे नाथ ! साधारण मनुष्य की भाँति, निश्चेष्ट होकर आप कैसे सोए हुए हैं ?' तब रावण बोला, 'सीता की विरह-वेदना में इतना आकूल हो गया हं कि मुझ में किसी भी प्रकार की चेष्टा करने का, यहाँ तक कि बोलने-देखने का भी सामर्थ्य नहीं है। अतः हे मानिनी ! तुम यदि मुझे जीवित देखना चाहती हो तो अभिमान त्यागकर सीता के निकट जाओ और उसे शान्त भाव से समझाने की चेष्टा करो ताकि वह मेरे साथ सुख भोगने के लिए सम्मत हो जाए। मैंने गुरु साक्षी में नियम लिया था कि अनिच्छक पर-स्त्री का भोग मैं नहीं करूंगा। वही नियम आज मेरे सम्मुख अर्गला के रूप में उपस्थित हो गया है।' (श्लोक १२५-१३०) रावण की बात सुनकर पति की वेदना से व्यथित होकर कुलीन मन्दोदरी उसी समय देवरमण उद्यान में गई और वहाँ जाकर सीता से बोली, 'मैं रावण की पट्ट महारानी मन्दोदरी हूं। लेकिन अब से मैं ही तुम्हारी दासी बनकर रहूंगी। एतदर्थ तुम रावण की बात मानो। हे सीता, तुम धन्य हो कारण जिसके चरण-कमल की सभी सेवा करते हैं ऐसे बलवान् मेरे पति तुम्हारे चरण-कमलों की सेवा के लिए उद्यत हो गए हैं। यदि रावण-से पति प्राप्त हों तो उनके सन्मुख प्यादे के समान भूचारी और तपस्वी राम तो रङ्क तुल्य है।' मन्दोदरी की यह बात सून सीता क्रोधित होकर बोली, 'अरे कहाँ सिंह और कहाँ शृगाल ? कहाँ गरुड़ और कहाँ काफ पक्षी ? कहाँ राम और कहाँ तुम्हारे पति रावण ? अहो, तुम्हारा और तुम्हारे पति का दाम्पत्य जीवन योग्य ही है ।
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
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