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किया। थोड़ी देर में ही जब सुग्रीव लौटा तो द्वारपालों ने उसे रोका । बोला, 'राजा सुग्रीव अभी भीतर हैं । ' ( श्लोक ५९-६२ ) एक जैसे दो सुग्रीव देखकर बालिपुत्र चन्द्ररश्मि के मन में कुछ सन्देह हुआ । अत: अन्तःपुर में कोई अघटित घटित न हो जाए इसलिए उसने अन्तःपुर में प्रवेश किया। वहां जाकर उसने उसी प्रकार छद्मवेशी सुग्रीव को तारादेवी के कक्ष में प्रवेश करने के पूर्व ही रोक दिया जिस प्रकार पर्वत नदी प्रवाह को रोक देता है । ( श्लोक ६३-६४ )
तब संसार के समस्त सत्त्व की तरह सब जगह से चौदह किन्तु वे भी सच्चे और झूठे अतः दो भागों में विभक्त होकर ( श्लोक ६५-६६ )
तदुपरान्त भयङ्कर युद्ध आरम्भ हो गया । भालाओं के आघात से अग्नि स्फुलिंग इस प्रकार निकलने लगे कि लगा आकाश में उल्कापात हो रहा है। वाहन के साथ वाहन आरोही के साथ आरोही, रथी के साथ रथी, पदातिक से पदातिक युद्ध करने लगे । प्रौढ़ पति के समागम से मुग्धा स्त्री जिस प्रकार कम्पित होती है उसी प्रकार चतुरंगिनी सेना के विमर्दन से पृथ्वी कम्पित होने लगी । तब सच्चे सुग्रीव नं मस्तक उठाकर छद्मवेशी सुग्रीव को आह्वान कर कहा 'ओ अन्य के घर में प्रवेश करने वाले लम्पट, सामने आ ।' उसका आह्वान सुनकर तिरस्कृत हाथी की तरह छद्मवेशी सुग्रीव उग्र गर्जन करते-करते उसके सामने आया ।
(श्लोक ६७-७१ )
अक्षौहिणी सेना एकत्र की गई; सुग्रीव का पता नहीं लगा सके अपने- अपने पक्ष को ले लिया ।
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क्रोध से लाल आँख किए यमराज के सहोदर की तरह जगत् को त्रासित करते हुए वे दोनों युद्ध करने लगे । दोनों ही रण - कुशल तो थे ही अतः एक-दूसरे के शस्त्रों को अपने अस्त्र से तृण की भाँति छिन्न करने लगे । दो भैसों की लड़ाई में जैसे वृक्ष के टुकड़े उड़ते हैं उसी प्रकार उन दोनों के युद्ध में अस्त्रों के टुकड़े आकाश में उड़ने लगे । उनको देखकर आकाश की खेचरियाँ भयभीत होने लगीं । क्रोधियों के शिरोमणि दोनों के अस्त्र जब निःशेष हो गए तव दोनों मल्लयुद्ध करने लगे । उन्हें देखकर लगता था जैसे दो पर्वत युद्ध कर रहे हों । क्षण में आकाश में उड़ते और क्षण में
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