SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [121 बोले, 'यहाँ से कुछ ही दूरी पर मेरे प्रभु, पत्नी सहित बैठे हुए हैं। उनके आहार किए बिना मैं आहार नहीं कर सकता।' (श्लोक ८२-८३) कल्याणमाला ने भद्र आकृति युक्त एवं मधूर भाषी व्यक्तियों को भेजकर राम और सीता को वहाँ बुलवा लिया। कल्याणमाला ने उन्हें प्रणाम किया और उनके लिए एक स्कन्धावार निर्मित करवा दिया। राम ने वहीं स्नान कर भोजन किया । (श्लोक ८४-८६) तदुपरान्त कल्याणमाला स्त्री वेष धारण कर बिना अनुचरों को लिए केवल एक मन्त्री के साथ राम के पास गई। लज्जा से नम्र बनी कल्याणमाला को राम ने पूछा, 'भद्र, पुरुष वेश धारण कर तुम क्यों स्त्री भाव को छिपा रही हो?' (श्लोक ८६-८७) __कुवेरपति कल्याणमाला ने तब कहा, 'इस कुवेरपुर में बालिखिल्य नामक एक राजा थे। पृथ्वी नामक उनकी रानी थी। जब रानी गर्भवती हुई उसी समय म्लेच्छों ने कुवेरपुर पर आक्रमण किया और बालिखिल्य को बन्दी बना कर ले गए। समय होने पर पृथ्वी देवी ने एक कन्या को जन्म दिया; किन्तु बुद्धिशाली सुबुद्धि नामक मन्त्री ने समस्त नगर में प्रचारित कर दिया कि राजा के पुत्र हुआ है। पुत्र जन्म का संवाद पाकर यहाँ के मुख्य राजा सिहोदर ने कहला भेजा कि जब तक वालिखिल्य मुक्त होकर यहाँ लौटकर नहीं आ जाते हैं तब तक यह बालक ही यहाँ का राजा रहेगा। अत: मैं जन्म से ही पुरुष वेष धारण कर इतनी बड़ी हुई हूं। यह बात सिवाय मेरे, मेरी माँ और मन्त्री के, कोई नहीं जानता। कल्याणमाला के नाम से प्रसिद्ध होकर मैं मन्त्रियों के विचार सामर्थ्य से इस राज्य पर शासन कर रही हूं। कभी-कभी असत् भी सत् प्रवृत्ति का रूप ले लेता है। मैंने अपने पिताजी को मुक्त कराने के लिए म्लेच्छों को बहुत धन दिया है; किन्तु वे धन तो ले लेते हैं; लेकिन उन्हें मुक्त नहीं करते । अतः हे दयानिधि ! आप कृपा करें। आपने जिस प्रकार सिंहोदर के हाथ से वज्रकरण मुक्त किया है। उसी प्रकार मेरे पिताजी को भी म्लेच्छों के हाथों से मुक्त करिए।' (श्लोक ८८.९५) . राम बोले, 'जब तक हम तुम्हारे पिताजी को मुक्त नहीं
SR No.090517
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rajkumari Bengani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1994
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Biography
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy