________________
( in )
राजा का एवं ग्यारहवें भव का वर्णन और पांचवें सर्ग में भगवान शांतिनाथ के पांचों कल्याणकों तथा चक्रवर्ती पद प्राप्ति का विस्तृत वर्णन है।
छठे पर्व में 8 सर्ग हैं
पहले सर्ग में सतरहवें तीर्थङ्कर एवं छठे चक्रवर्ती कुथुनाथ का जीवनचरित है।
दूसरे सर्ग में सातवें चक्रवर्ती एवं 18वें तीर्थङ्कर भगवान अरनाथ का जीवनचरित है।
तीसरे सर्ग में छठे वासुदेव पुरुष पुण्डरीक, बलदेव आनन्द और प्रतिवासुदेव बलिराजा का चरित है।
चौथे सर्ग में आठवें चक्रवर्ती सुभूम का चरित है। इसी के अन्तर्गत महर्षि परशुराम का चरित भी है।
पांचवें सर्ग में क्रमशः सातवें वासुदेव दत्त, बलदेव नन्दन और प्रतिवासुदेव प्रह्लाद का चरित है।
___ छठे सर्ग में उन्नीसवें तीर्थङ्कर भगवान मल्लिनाथ का जीवन चरित है। इसी के साथ उनके पूर्व भव के छह मित्रों का जीवन अङ्कित है।
सातवें सर्ग में बीसवें तीर्थङ्कर मुनि सुव्रत स्वामी का जीवनचरित, हरिवंश की उत्पत्ति एवं अश्वावबोध तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन है ।
आठवें सर्ग में महापद्म नामक नौवें चक्रवर्ती का जीवनचरित है ।
इस प्रकार भाग 4-पर्व 5-6 में सोलहवें से बीस-5 तीर्थङ्कर, 5 से 9-5 चक्रवर्ती, छठे-सातवें 2-2 वासुदेव, बलदेव, प्रतिवासुदेवकुल 16 महापुरुषों का जीवन संकलित है। इस प्रकार देखा जाए तो भाग 1 से 4, • पर्व 1 से 6 के कुल 40 सर्गों में 20 तीर्थङ्कर, 9 चक्रवर्ती, 7 वासुदेव, 7 बलदेव, 7 प्रतिवासुदेव-50 शलाका महापुरुषों का विशद जीवनचरितों का समावेश हो गया है । विशेष ज्ञातव्य है कि 16-18वें तीर्थङ्कर उसी भव में चक्रवर्ती पद का उपभोग कर तीर्थंकर बने हैं ।
पूर्व में प्राचार्य शीलांक ने 'चउप्पन-महापुरुष-चरियं' नाम से इन 63 महापुरुषों के जीवन का प्राकृत भाषा में प्रणयन किया था। शीलांक ने 9 प्रतिवासुदेवों की गणना स्वतन्त्र रूप से नहीं की, अत: 63 के स्थान पर 54 महापुरुषों की जीवन-गाथा ही उसमें सम्मिलित थी।