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करता उसी प्रकार राजाओं द्वारा उनका आदेश पालन किया जाता था फलतः वे वज्रपाणि इन्द्र की तरह पृथ्वी पर शासन करते थे। जो दाक्षिण्य के उपयुक्त होता उसे वे कोमल हृदयी पिता की भांति सहयोग देकर, जो उपहार से वशीभूत होने योग्य होता उसे प्रेतात्मा को वश में करने वाले की तरह उपहार देकर, जो चतुर होते उन्हें चुम्बक जैसे लोहे को विभक्त करता है उसी भांति उनमें भेद सृष्टिकर और जो अपराधी होते उन्हें द्वितीय दण्डपाणि की तरह दण्ड देकर वशीभूत रखते ।
(श्लोक १३-१७) एक दिन मदन-सखा वसन्त का आविर्भाव होने पर वे क्रीड़ा करने उद्यान में गए। हाथी पर चढ़कर जाते समय उनकी दृष्टि जुलाहा वीर की पत्नी पद्मनयना वनमाला पर पड़ी। उसके स्फीत उन्नत वक्ष, पद्मनाल-सी कोमल बाहें, वज्र के मध्य भाग-सी कमर, नदी सैकत-से विस्तीर्ण नितम्ब, आवर्त-सी गम्भीर नाभि, हस्ती सुण्ड-सी पुष्ट जंघा, कमल-सी रक्ताभ हथेलियां और पदतल एवं बंकिम भौंहे देखकर राजा का मन मदन द्वारा विचलित हो गया। उसके वस्त्र स्खलित होने पर भी उसने बाएँ हाथ से नितम्ब का वस्त्र और दाहिने हाथ से वृक्षों के वस्त्रों को पकड़ रखा था। उसे इस अवस्था में देखकर राजा हस्ती की गति मन्द कर सोचने लगेक्या यह स्वर्ग से आगत शापभ्रष्टा कोई अप्सरा है या वनलक्ष्मी स्वयं ही रूप धारण कर यहां आई है या यह वसन्तश्री अथवा कामदेव से वियुक्ता रति या नागकन्या है ? अथवा यह रमणी रत्न है जिसे विधाता ने कौतूहलवश बनाया है। (श्लोक १८-२५)
__ ऐसा सोचकर राजा हाथी को अग्रसर न कर बार-बार वहीं घुमाने लगे मानों वे किसी की प्रतीक्षा कर रहे हों। राजा का मनोभाव जानने के लिए तब मन्त्री ने उनसे पूछा-'महाराज, हमारे परिजन आदि सभी उपस्थित हो गए हैं फिर बिलम्ब क्यों ?' मन्त्री की बात सुनकर बहुत कष्ट से स्वयं को संवरण कर वे वृहत् यमुनोद्वर्त उद्यान में गए; किन्तु आम्रमंजरी से सुशोभित आम्रवन, नवपल्लवों से सुशोभित अशोक कुञ्ज, हवा से आन्दोलित कुसुम स्तवकों में लटके भ्रमर राजि, जिनके पत्रों ने पंखों का आकार ले लिया है ऐसा कदली वृक्ष, वसन्त लक्ष्मी की कर्णाभरण रूप कणिकार पुष्प या अन्य दर्शनीय सामग्री भी बनमाला की चिन्ता