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थीं; किन्तु मन वक्र नहीं था। उनकी कटि क्षीण थी; किन्तु बुद्धि क्षीण नहीं थी। सैन्यवाहिनी जिस प्रकार सेनापति से सुशोभित होती है उसी प्रकार उनके समस्त गुण सद्-व्यवहार से शोभित होते थे।
(श्लोक २३ २७) राजा पद्म के जीव ने वैजयन्त विमान की तैंतीस सागरोपम की आयु व्यतीत की। चैत्र मास की कृष्णा पंचमी को चन्द्र जब अनुराधा नक्षत्र में था तब पद्म का जीव विमान से च्युत होकर रानी लक्ष्मणा के गर्भ में अवतरित हुआ। उसी समय सुख-शय्या में सोई रानी लक्ष्मणा ने तीर्थकर जन्म को सूचित करने वाले चौदह महास्वप्न देखे । पृथ्वी जिस भाँति अलक्षित रूप से रत्नभार वहन करती है उसी प्रकार उन्होंने स्वच्छन्दतापूर्वक अलक्षित रूप से गर्भभार वहन किया। पौष कृष्णा द्वादशी को जब चन्द्र अनुराधा नक्षत्र में अवस्थित था उन्होंने चन्द्र-से वर्ण और चन्द्रलांछनयुक्त एक पुत्ररत्न को प्रसव किया।
(श्लोक २८-३२) सिंहासन के कम्पित होने पर अष्टम तीर्थंकर का जन्म अवगत कर छप्पन दिक्कुमारियाँ उनके जन्म-कृत्य सम्पादन करने को आयीं। सौधर्म देवलोक के इन्द्र ने सानन्द प्रभु का जन्म-स्नात्र महोत्सव अनुष्ठित किया। देवों द्वारा परिवृत्त होकर वे प्रभु को मेरु पर्वत पर ले गए। इन्द्र अति पाण्डुकवला शिखर स्थित रत्नजड़ित सिंहासन पर प्रभु को गोद में लेकर बैठ गए। अच्युतादि त्रेसठ इन्द्रों ने आनन्दमना होकर उन्हें स्नान करवाया-फिर दिव्य गन्ध अलंकार और वस्त्रों से उनकी वन्दना, उपासना कर भगवान् की इस प्रकार स्तुति की :
(श्लोक ३३-३८) ___'अनन्तगुण सम्पन्न आपकी जो स्तुति करने को मैं प्रवृत्त हुआ हं यह वैसा ही हास्यास्पद है जैसे आकाश को धारण करने के लिए चातक अपने पाँवों को ऊपर कर सोता है। फिर भी मैं आपकी शक्ति से ही आपकी स्तुति करता हूं। सामान्य-सा मेघ भी पूर्वी हवा से क्या आकाश को आच्छादित नहीं कर देता? मनुष्यों द्वारा आप दृष्ट और श्रुत हैं इसीलिए आप कर्म पुञ्ज का विनाश करने के लिए एक अद्वितीय अस्त्र हैं। आज पृथ्वी पर शुभ कर्म का उदय हुआ है। जिस प्रकार सूर्य कमल के अन्धकार को दूर करने के लिए उदित होता है उसी प्रकार सबके अज्ञानान्धकार को दूर करने के