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केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् १६ पूर्वाङ्ग ६ मास कम एक लाख पूर्व तक संयम का पालन किया।
(श्लोक १८४-१९१) निर्वाण समय निकट जानकर भगवान् सम्मेत-शिखर पर्वत पर गए और एक मास का उपवास किया। अग्रहण कृष्णा एकादशी को चन्द्र जब चित्रा नक्षत्र में था तब अपने चार अघाती कर्मों को क्षयकर सिद्धों के चार अनन्त प्राप्त किए। चतुर्थ ध्यान में मनुष्य की चतुर्थ स्थिति अर्थात् मोक्ष को प्राप्त किया। उनके साथ अनशन लेने वाले ८०३ साधु भी मोक्ष को प्राप्त हुए। (श्लोक १९२-१९३)
साढ़े सात लाख पूर्व और सोलह पूर्वाङ्ग राजकुमार रूप में साढ़े इक्कीस लाख पूर्व राज्य की रक्षा करते हुए और एक लक्ष पूर्व कम सोलह पूर्वाङ्ग व्रत ग्रहण कर इस पृथ्वी पर उन्होंने विचरण किया। इस प्रकार भगवान् पद्मप्रभ की सर्वायु ३० लाख पूर्व की थी। सुमतिनाथ के निर्वाण के ९ हजार कोटि सागर के पश्चात् भगवान् पद्मप्रभ का निर्वाण हुआ।
(श्लोक' १९४-१९६) ___ भगवान् के निर्वाण के पश्चात् ६४ इन्द्र वहां आए और भगवान् एवं मुनियों की देह का भक्ति भाव से संस्कार कर निर्वाण कल्याणक उत्सव किया ।
(श्लोक १९७) चतुर्थ सर्ग समाप्त
पंचम सर्ग तट को प्लावित करने वाली केवल-समुद्र की तरंगों की तरह श्री सुपार्श्व जिन की वाणी तुम्हारी रक्षा करे। जीवों के मिथ्यात्वरूप अन्धकार के लिए सूर्य-किरणों की तरह उज्ज्वल सप्तम तीर्थङ्कर श्री सुपार्श्वनाथ जिन के जीवनवृत्त का मैं अब वर्णन करूंगा।
(श्लोक १-२) धातकी खण्ड द्वीप के पूर्व विदेह में रमणीय नामक विजयमें क्षेमपूरी नामक एक नगरी थी। वहां पृथ्वी को आनन्दप्रदानकारी सूर्य की भांति भास्वर समृद्धि के निवासरूप नन्दीसेन नामक एक राजा राज्य करते थे। धर्म ही मानो उनका मन्त्री और दाहिना हाथ था, ऐसे वे राज्य कार्य में सदैव जागरूक रहते थे। प्रजा के सुख में कंटक रूप व्यक्तियों का जब वे विनाश करते तो उनका वह