________________
१७०]
वार्तालाप किया। साथ ही उसके आने का कारण पूछा।
(श्लोक २३१-२३३) तब दूत बोला-'महाराज, मेरे प्रभु शत्रु के गर्व को खर्व करने वाले महाराज तारक ने आपको यह आदेश दिया है कि आपके राज्य में जो श्रेष्ठ हस्ती, अश्व व रत्नादि हैं उन सभी को राजा को प्रदान कर दें। कारण, भरत क्षेत्र के दक्षिण भाग में जितने भी श्रेष्ठ द्रव्य हैं उन पर अर्द्ध भरत के अधीश्वर तारक का अधिकार है, अन्य किसी का नहीं।'
(श्लोक २३४-२३६) यह सुनकर उल्ल द्वारा क्रोधित सिंह की तरह मानो वे दूत को दग्ध कर देंगे ऐसी दृष्टि से देखते हुए द्विपृष्ठ बोले-'न वे हमारे वंश के ज्येष्ठ पुरुष हैं, न रक्षक, न अधीश्वर । हम जब अपना राज्य शासन कर रहे हैं तब हमारे अधीश्वर कैसे हुए ? वे तो मात्र बाहुबल के कारण हमसे हस्ती, अश्व और रत्न चाह रहे हैं तो हम भी बाहुबल के कारण हस्ती, अश्व और रत्न मांग रहे हैं । दूत, तुरन्त जाओ और उन्हें जाकर कहो कि हम उसका मस्तक सह हस्ती, अश्व और रत्नादि लेने उनके सम्मुख उपस्थित हो रहे हैं।'
(श्लोक २३७-२४०) द्विपृष्ठ के ऐसे गर्व भरे और हठकारी वाक्यों से क्षुब्ध होकर दूत तत्काल वहां से प्रस्थान कर तारक के निकट पहुंचा और सारी घटना उसे निवेदित की। मद झरते हस्ती पर जिस प्रकार अन्य मद झरने वाला हस्ती क्रोधित होता है उसी प्रकार वासुदेव के कथन से क्रुद्ध होकर तारक ने तुरन्त युद्धभेरी बजवा दी। युद्धभेरी सुनते ही सैन्य, सामन्त, मन्त्री, सेनापति, राजन्य और रथीगण दीर्घकाल के पश्चात् प्राप्त यम के सहोदर तुल्य युद्ध के लिए जिनके हाथ खुजला रहे थे राजा के सम्मुख उपस्थित हुए। जब तारक ने युद्ध-यात्रा प्रारम्भ की तो भूमिकम्प, वज्रपात, कौवे की कॉ कॉ ध्वनि की तरह अशुभ चिह्न प्रकट हुए। क्रुद्ध अर्द्ध चक्री ने बिना इसकी परवाह किए, बिना विश्राम लिए शीघ्र ही पथ अतिक्रमण किया।
(श्लोक २४१-२४६) इधर ब्रह्मा और विजय सहित द्विपृष्ठ सैन्यवाहिनी लिए आक्रमण करने को सिंह की तरह गरजते उनके सम्मुख आए। युद्धोन्माद के कारण देह फूल उठने से उनके कवच छिन्न हो जाने