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[१५३ अपना निर्वाण समय निकट जानकर प्रभु एक हजार मुनियों सहित सम्मेद शिखर पर्वत पर गए और अनशन तप प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार शैलेशीकरण ध्यान में एक मास व्यतीत कर श्रावण कृष्णा तृतीया को चन्द्र जब धनिष्ठा नक्षत्र में था एक हजार मुनियों सहित भगवान् ने अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त शक्ति और अनन्त सुख-स्वरूप मोक्ष को प्राप्त किया। भगवान् कुमारअवस्था में २१,०००,०० वर्षों तक, राज्याधिपति के रूप में ४२,०००,०० वर्षों तक और संयम पर्याय में २१,०००,०० वर्षों तक रहे सब मिलाकर ८४,०००,०० वर्षों तक पृथ्वी पर आपने विचरण किया। भगवान् शीतलनाथ के निर्वाण के एक सौ सागर छह लाख छह सौ छब्बीस वर्ष कम एक करोड़ सागर के पश्चात् भगवान् श्रेयांसनाथ का निर्वाणोत्सव हुआ। यह महोत्सव देव और इन्द्र द्वारा अनुष्ठित हुआ। महापुरुषों के निर्वाण पर उत्सव होता है, शोक नहीं।
. (श्लोक ८५७-८६४) तदुपरान्त त्रिपृष्ठ वासुदेव अपनी ३२,००० रानियों सहित सांसारिक सुख भोग करते हुए समय व्यतीत करने लगे। महारानी स्वयंप्रभा ने श्रीविजय और विजय नामक दो पुत्रों को जन्म दिया।
(श्लोक ८६५) एक समय रतिसागर में लीन त्रिपृष्ठ के पास कुछ गायक आए जो कि अपने कण्ठ-माधुर्य से किन्नरों को भी परास्त कर चुके थे। सर्व कला निधान वासुदेव को भी उन्होंने विविध प्रकार के श्रुति मधुर संगीत से विमुग्ध कर दिया। सगीत माधूर्य के लिए त्रिपृष्ठकुमार ने उन्हें अपने पास ही रख लिया । गायन से सभी ख्याति प्राप्त करते हैं फिर जो विशेष अधिकारी होते हैं उनका तो कहना ही क्या।
(श्लोक ८६६-८७०) एक बार रात्रि में जबकि त्रिपृष्ठकुमार अपनी शय्या पर विश्राम कर रहे थे वे गायक इन्द्र के गन्धर्व की तरह उच्च स्वर से गाने लगे। त्रिपृष्ठ ने उनके गीत पर हस्ती की भाँति मुग्ध होकर अपने अपने शय्यापालक को आदेश दिया कि जब मुझे नींद आ जाए तब गाना बन्द करवा देना क्योंकि जब मैं सुनूगा ही नहीं तो गाना व्यर्थ होगा।
__ (श्लोक ८७१-८७३) शय्यापालक ने उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर ली। वासुदेव