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जागरूक, संचित रत्न की तरह अपने चारित्र की रक्षा करती थी। नयन-कमल की तरह वह सदैव सुन्दर प्रतीत होती थी मानो राज्य की श्री ने रूप ग्रहण किया है, मानो परिवार के प्रति एकान्तिक निष्ठा ही मूर्तिमान हो उठी है।
(श्लोक १६४-१६६) एक दिन सुवल का जीव अनुत्तर विमान से च्यव कर महारानी की कुक्षि में प्रविष्ट हुआ। रात्रि के शेष भाग में सुख-शय्याशायीन उन्होंने बलदेव के जन्म की सूचना देने वाले चार महास्वप्न देखे । आनन्द के आधिक्य से नींद टूट जाने पर वे उसी समय उठकर राजा के पास जाकर बोलीं - 'रजत-पर्वत-से चार दाँत विशिष्ट हस्ती को मेघ में चन्द्रमा-प्रवेश की तरह मैंने मुख में प्रवेश करते देखा है। एक उच्च कुम्भ, विशिष्ट नादकारी खड़ी पूछ युक्त निर्दोष मानो शरद-मेघ से रचित हुआ है ऐसा वृष देखा । पूर्णचन्द्र देखा जिसकी किरणें बहुत दूर तक विस्तृत होकर मानो दिक्समूह के कर्णाभरण प्रस्तुत कर रही हों । गुञ्जरित भ्रमर जिस पर बैठे हैं ऐसे प्रस्फुटित कमल सह एक पद्महद देखा जो मानो शतमुख होकर गा रहा हो। प्रभु इस स्वप्न-दर्शन का फल मुझे बताएँ । कारण, मंगलकारी स्वप्नों के विषय में अनजान को पूछने से लाभ नहीं होता।'
(श्लोक १६७-१७४) राजा बोले, 'प्रिये ! इस स्वप्न-दर्शन के फलस्वरूप तम्हारा पुत्र महाबलशाली और सौन्दर्य में देवोपम होगा।' (श्लोक १७५)
__यथा समय रानी ने श्वेतवर्ण, दीर्घबाहु, अस्सी धनुष दीर्घ एक पुत्र को उसी प्रकार प्रसव किया जैसे पूर्व दिशा चन्द्र को प्रसव करती है । चक्रवर्ती जैसे चक्र उत्पन्न होने पर उत्सव करते हैं राजा ने भी उसी प्रकार पुत्र-रत्न के जन्म का महोत्सव किया । एक शुभ दिन शुभ नक्षत्र में उन्होंने साडम्बर पुत्र का नाम रखा अचल । नहर के जल से जैसे वृक्ष वद्धित होता है वैसे ही धात्रियों द्वारा लालित होकर देह-सौन्दर्य सम्पन्न वे दिन-दिन वद्धित होने लगे।
(श्लोक १७६-१७९) अचल के जन्म के कुछ समय पश्चात् रानी भद्रा ने केतकी जैसे पुष्पभार धारण करती है उसी प्रकार पुनः गर्भ धारण किया । समय पूर्ण होने पर जाह्नवी जैसे कमल उत्पन्न करती है वैसे ही सर्व सुलक्षणा एक कन्या को उन्होंने जन्म दिया। उसका मुख चन्द्र-सा,